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सुप्रीम कोर्ट का फैसला और शिक्षा मित्रों के उग्र आंदोलन ,क्या शिक्षा मित्रो का आन्दोलन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनादर है ऐसे मे शिक्षा मित्रो को उचित दंड मिलना चाहिए
शिक्षा की दुर्दशा सुधरने की जगह बिगड़ती ही जा रही है। सरकारी प्राथमिक शिक्षा का एक समय वह भी था जबकि शिक्षकों के अभाव में सरकारी प्राथमिक विद्यालय बंद होने की कगार पर पहुँच गये थे।उस आड़े वक्त पर शिक्षा को गर्त में जाने से बचाने के लिये सरकार द्वारा अस्थाई वैकल्पिक व्यवस्था शिक्षा मित्र के रूप में ग्राम पंचायत स्तर से की गयी थी।यह शिक्षा मित्र शिक्षित तो थे लेकिन शिक्षक नहीं थे।उस समय इनकी नियुक्ति सत्रान्त तक के लिये की गयी थी।फिलहाल यह सही है कि इन शिक्षा मित्रों ने सरकारी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को अवरूद्ध होने से बचाकर शिक्षक एक विकल्प के रूप सामने आ गये। जब इन्हें लगा कि वह शिक्षकों से कम से नहीं है तो अपने संगठन के माध्यम से अपने स्थायीकरण की माँग को लेकर आंदोलन में कूद पड़े । शिक्षा मित्रों की संख्या को देखते हुये अखिलेश सरकार ने राजनैतिक फायदे के लिये इन्हें मानक के विरुद्ध शिक्षक बना दिया था।सरकार के इस फैसले को उच्च न्यायालय ने गत वर्ष निरस्त कर दिया था जिसे लेकर शिक्षा मित्रों का आंदोलन जानलेवा हो गया था।इसके बाद सरकार ने इन्हें अपनी तरफ से अबतक शिक्षक बनाये रखा था और राज्यकोष से इन्हें शिक्षक का वेतन दे रही थी।वर्तमान समय में यह शिक्षा मित्र शिक्षक के रूप में ही नहीं बल्कि प्रभारी प्रधानाचार्य के पद पर कार्य कर रहे थे।उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में चल रहे बहुप्रतीक्षित मुकदमे का फैसला दो दिन पहले आ गया है।सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों के समायोजन को रद्द करके उन्हें शिक्षक बनने के लिये परीक्षा उत्तीर्ण करने का अवसर दिया है। अदालत ने शिक्षा मित्रों को सड़क पर नहीं आकर आकर आंदोलन तोड़फोड़ आगजनी करने के लिये नही बल्कि स्कूल में जाकर पढ़ाने और अपनी तैयारी करने के लिये उनका मूल पद दो वर्ष के लिये बहाल कर रखा है।एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों के पिछले उग्र आंदोलन एवं संवेदनशीलता को देखकर बहुत सोच समझकर राहत भरा निर्णय सुनाया है ताकि “लाठी भी न टूटे और साँप भी मर जाय”।शिक्षक बनने के लिये कुछ मानक होते हैं और बिना उन्हें पूरे किये शिक्षक नहीं बना जा सकता है।इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शिक्षा मित्र स्कूल की जगह सड़कों पर आकर उग्र आंदोलन आगजनी तोड़फोड़ व अराजकता पैदा करने पर उतारू हो गये हैं।कल पूरे दिन पूरे प्रदेश में शिक्षा मित्रों के उग्र आंदोलन से सड़कें जाम रही और अधिकारियों को अपनी जान बचाने के लाले पड़ गये।सुप्रीम कोर्ट की जगह कार्यालयों में तोड़फोड़ आगजनी और रोडजाम करके जनमानस को संकट में डालना उचित नहीं है। फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने सुनाया है जनता अधिकारी या सरकार ने नहीं सुनाया है।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के सामने पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था नतमस्तक होती है।शिक्षा मित्रों को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी नियुक्ति एक वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में हुयी थी।जब अदालत ने दो वर्ष के अंदर “मानक परीक्षा” उत्तीर्ण करने का समय दिया है तो गुस्सा किस बात का है।गुस्सा तो उन्हें होना चाहिए जिनके पास सिर्फ सपा बसपा जमाने की डिग्री है और जिनके के लिये मानक परीक्षा उत्तीर्ण कर पाना संभव नहीं है।यह सही है कि शिक्षा मित्रों में अधिकांश ऐसे हैं जो शिक्षक न होते हुये भी शिक्षकों से कई गुणा अधिक बेहतर हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अंगीकृत कर उसका स्वागत किया जाना चाहिए कि उसने शिक्षा मित्रों की रोजी नहीं छीनी।अदालत के सामने एक तरफ वह शिक्षक मानक को पूरा किये बेरोजगार थे दूसरी तरफ वैकल्पिक व्यवस्था के मानक विहीन शिक्षा मित्र थे।अदालत ने दोनों को प्राणदान दिया और दोनों को बेरोजगार नहीं किया।अदालत ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत सरकारी कोष से दिये गये वेतन को भी बहाल करके शिक्षा मित्रों को बेरोजगार होने से बचाने लिया है।शिक्षा मित्रों को अदालत के फैसले का आदर करते हुये अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते हुये शिक्षक परीक्षा की तैयारी करना चाहिए।तोड़फोड़ हंगामा मारपीट मुकदमेबाजी से कुछ हासिल नहीं होने वाला है।सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अब राष्ट्रपति ही बदल सकता है।राज्य सरकार चाहे तो दो वर्ष के कार्यकाल के लिये महंगाई को देखते हुये वेतन वृद्धि करके राहत दे सकती है। कुल मिलाकर जिस अंदाज में शिक्षा मित्रों के उग्र आंदोलन का आगाज कल हुआ है उससे अराजकता पैदा होगी । इस तरह शिक्षा मित्रो के द्वारा आन्दोलन कर आम जनमानस व सरकारी सम्पत्तियो का नुकसान व माननीय उच्च न्यायालय के आदेशो को सड़को पर चैलेंज देना बहुत ही निन्दनीय कृत है इसके खिलाफ सरकार व माननीय उच्च न्यायालय को उचित दंडात्मक कारवाई करनी चाहिए नही तो भविष्य मे आए दिन लोग न्यायालयो के आदेश की धजजिया उडाएगे ।संविधान और कानून से ऊपर कोई नही है ।ऐसे मे शिक्षा मित्रो को उचित दंड मिलना चाहिए । ये लेखक अपने विचार है । जिला अध्यक्ष आलमीडिया जर्नलिस्ट बेलफेयर एसोसिएशन गोंडा पवन कुमार द्विवेदी
https://www.youtube.com/watch?v=j3zpe5yTHd4&t=3s
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