सियासत में शियों का गिरता मेयार

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वक़ार रिज़वी
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सियासत में शिया कल भी थे और आज भी हैं आज अगर सियासत में कोई मुसलमान आरती उतारते मिल जाये, हनुमान चालीसा पढ़ता मिल जाये, गाय के ईदर्गिद मंडराता मिल जाये, भगवान राम उसके ख़्वाब आने लगे तो आप बिना दिमाग़ पर ज़ोर डाले समझ लेते हैं कि यह ज़रूर शिया मुसलमान है, लेकिन क्या कल भी ऐसे ही शिया मुसलमान सियायत में थे?कहते हैं कि अकबर दि ग्रेट के नौ रत्नों में से 5 शिया थे। जंगे आज़ादी की लड़ाई में पहले शहीद होने वाले सहाफ़ी मोलवी बाकिऱ भी शिया थे। आज़ादी के बाद मरकज़ में और तमाम सूबों के शिक्षा मंत्री शिया रहे, जवाहरलाल नेहरू के पर्सनल सेक्रेट्री सज्जाद ज़हीर भी शिया थे, प्रोफ़ेसर नुरूल हसन केन्द्र में शिक्षा मंत्री रहे वह भी शिया थे, बिहार में बहुत दिन शिक्षा मंत्री रहे ज़व्वार हुसैन की ख़ूबी यह थी कि जब वह मंत्री नहीं रहते थे तो उन्हें यूनीवर्सिटी का वाईस चांसलर बना दिया जाता था, अपने सूबे उत्तर प्रदेश में अली ज़हीर साहब के पास भी एक वक़्त में कई अहम विभाग रहे जब सिब्ते रज़ी मंत्री बने तो उन्हें भी एजूकेशन मिनिस्टर ही बनाया गया। मुख़्तार अनीस भी जब मंत्री बने तो उन्हें हेल्थ जैसा अहम मोहकमा दिया गया, महारष्ट में भी डा. सैयद अहमद खऱाब से खऱाब हालात में भी चुनाव जीत कर मंत्री बनें और फिर गर्वनर। इसके अलावा चौधरी सिब्ते मोहम्मद और अकबर हुसैन बाबर जैसा अब शायद ही कोई सियासत में आये। यह सब के सब मुसलमानों के रहनुमा थे नाकि किसी एक क़ौम और फिऱक़े के और इनकी इल्मी सलाहियत पर हर पार्टी को इनकी ज़रूरत थी। आज भी सिब्ते रज़ी साहब जब किसी महफि़ल में तकऱीर करते हैं तो दानिश्वर हजऱात महज़ूज़ होते हैं।  अगर आज इसका जीता जागता सबूत देखना हो तो आज हमारे बीच डा. अम्मार रिज़वी मौजूद हैं जिन्हें अपनी पार्टी इसलिये किनारे किये हुये है कि पार्टी के तमाम अफऱाद नहीं चाहते कि कोई बसलाहियत शख़्स कय़ादत के कऱीब पहुंचे क्योंकि उनके पहुंचने से चाटुकारों की छुटटी हो जायेगी, दूसरी तरफ़ हर पार्टी चाहती है कि डा. अम्मार रिज़वी जैसी शखि़्सयत उसकी पार्टी में उसकी सरकार का हिस्सा हो जिससे उनकी इल्मी सलाहियत से फ़ायदा उठाया जा सके। डा. अम्मार रिज़वी जितने अपने दौरेइक़तेदार में मक़बूल थे आज भी उससे कम नहीं, वह न सिफऱ् तीन बार कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहे बल्कि तीन बार शिक्षा मंत्री भी रहे और शायद संसदीय कार्य मंत्री जितने साल वह रहे उतने साल कोई और न रहा हो। यह पोर्टफ़ालियों वह हैं जो किसी भी ऐरे ग़ैरे को नहीं दिये जाते बल्कि इसके लिये हर पार्टी को बसलाहियत शख़्स की तलाश होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी जब हज के सरकारी डेलिगेशन के लिये एक ऐसे नेता की तलाश हुई जो न अपने मुल्क से पूरी तरह वाकिफ़़ हो बल्कि विदेशी सियासत से भी पूरी तरह आशना हो और उसके दूसरे मुल्कों के हुक्मराहों से भी मरासिम हों और वह अपने देश का प्रतिनिधित्व पुरवक़ार तरीक़े से कर सके, तो इसके लिये उनकी पहली नजऱ में जो नाम आया वह डा. अम्मार रिज़वी का था। इसका सबब उनकी इल्मी सलाहियत के सिवा कुछ नहीं, वह एक बड़े कालेज के प्रिन्सिपल थे, ज़ाहिर है उन्होंने कालेज में पढ़ाया भी होगा, वह अंग्रेज़ी की टीचर थे लेकिन जब उर्दू की महफि़ल में बोलते हैं तो लगता है उर्दू इनसे ज़्यादा कोई और नहीं जानता जब फ़ारसी बोलते हैं तो लगता है यह फ़ारसी के उस्ताद रहे हैं, जब पी.डब्ल्यू.डी. मिनिस्टर रहे तो न सिफऱ् उन्होंने ब्रिज कारपोरेशन और राजकीय निमार्ण निगम जैसे डिपार्टमेंट की बुनियाद डाली जिससे न सिफऱ् प्रदेश में, देश में बल्कि विदेश में भी इसी ब्रिज कारपोरेशन के तहत कई पुल बनाये गये, उर्दू अकादमी की बिल्डिंग की संगेबुनियाद पर आज भी उनका ही नाम दर्ज है, लखनऊ से महमूदाबाद की रोड उन्हीं की देने है। उमूमन देखा गया है कि जब किसी को कोई छोटा सा भी रूतबा मिल जाता है तो वह अपनों को भी नहीं पहचानता और ज़मीन पर देखना गवारा नहीं करता लेकिन जब डा. अम्मार रिज़वी की तूती बोलती थी तब उन्होंने एक अनजान शख़्स से भी वैसा ही बर्ताव किया जैसे कोई अपने ख़ास से करता है जिस वक़्त वह अपने एक़तेदार के उरूज पर थे उस वक़्त मुलायम सिंह और राजनाथ सिंह को वह रूतबा नहीं था जो आज है उस वक़्त शायद वह एक साधारण विधायक थे लेकिन उनके हुस्ने एक़लाक़ ने सबको अपना बना लिया था शायद इसी लिये आज वह सब डा. अम्मार रिज़वी को बेहद इज़्ज़त देते हैं।इसके बरहक्स आज जो शिया मुसलमान सियासत में हैं वह सिफऱ् इसलिये कि एक ख़ास मोहकमें के लिये एक मुसलमान मंत्री की ज़रूरत पड़ती ही है जिसके लिये किसी इल्मी सलाहियत की कोई ज़रूरत नहीं बस आपको आपने आक़ा को ख़ुश करने की अदाकारी आनी चाहिये। इसलिये आज ज़रूरत है कि भाजपा में भी डा. अम्मार रिज़वी जैसे बसलाहियत, निडर लोग जायें जो न सिफऱ् अपनी क़ौम का वक़ार बढ़ाये बल्कि क़ौम के कुछ काम भी आयें और निडरता से हक़ बात कहने की जुर्रत कर सकें, हमे याद है कि माननीय राज्यपाल श्री रामनाईक जी की किताब का विमोचन था और डायस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, माननीय गर्वनर श्री रामनाईक जी और पश्चिम बंगाल के माननीय गर्वनर श्री केसरी नाथ त्रिपाठी और डा. अम्मार रिज़वी ख़ुद मौजूद थे इसी मंच से जब डा. अम्मार रिज़वी भाषण कर रहे थे तो इन सब की मौजूदगी में पश्चिम बंगाल के महामहिम गर्वनर केसारीनाथ त्रिपाठी के उस वाक्य़े को बयान करने से नहीं चूके जब केसरीनाथ त्रिपाठी ने विधान सभा अध्यक्ष रहते एक विवादित फ़ैसला दिया था या अभी जब आफ़ताब-ए-शरियत के शरियत कदे पर राजनाथ सिंह के साथ मौजूद थे और जनाब गोल मोल तरीक़े से कह रहे थे कि हम हर अच्छे आदमी के साथ हैं तब डा. अम्मार रिज़वी ने तेज़ आवाज़ में कहा कि मैं कोई लगी लिपटी बातें नहीं करता माइनरटीज़ फ़ोरम ने राजनाथ सिंह जी का खुलेआम सपोर्ट का एलान कर दिया है और हम इन्हीं के साथ हैं और इन्हीं को जिताने के लिये प्रयत्नशील भी। आज के दौर ऐसा साफग़ों होना बहुत मुश्किल है यह कुछ पुराने लोग हैं जो गंगा जुमनी तहज़ीब का जीता जागता नमूना हैं अगर ऐसे लोग सियासत में आयें तो वह किसी भी पार्टी में रहें, क़ौम के लिये फ़ायदे मंद हों न हों लेकिन क़ौम की बदनामी और रूसवाई का सबब तो हरगिज़ नहीं बनेंगें।

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