रजनीश कुमार शुक्ल
जहरीली शराब के काले कारोबार ने नजाने कितने लोगों को लील लिया। हमेशा से ही देश व प्रदेशों सरकारों ने इस पर आबकारी विभाग को सख्ती बरतने के लिए कहा लेकिन उनका आदेश शून्य नज़र आता रहा है। हर राज्यों का हाल यही रहा है चाहे वह उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड या अन्य राज्य हो। पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत से ऐसे खेल चलते रहते हैं उनको तो बस पैसे से मतलब रहता है चाहे जो हो, कोई ऐसा काण्ड जब होता है तो प्रशासन भी जाग जाता है और आबकारी विभाग की कार्यवाई होने लगती है, बाद में मामला खत्म होने के बाद फिर से माफिया सक्रिय हो जाते है। सरकारें इस वजह से ज्यादा ध्याना नहीं देती क्योंकि राज्यों में ज्यादातर पैसा आबकारी विभाग से ही आता है।
हाल में ही सहारनपुर में 46 व कुशीनगर में 11 वहीं रुड़की में 35 लोगों की जहरीली शराब से मौत हुई और 100 से ज्यादा लोग गम्भीर रूप से बीमार हो गये। वर्ष 2017 में जब योगी सरकार की शुरुआत हुई थी तब भी आज़मगढ़ में 30 लोगों की जहरीली शराब से मौत हुई थी। वर्ष 2018 में जहरीली शराब से सचेंडी क्षेत्र के धूल गांव में 10 लोगों की मौत हो गई थी यह मामला कानपुर और कानपुर देहात का था।
अब अगर अखिलेश सरकार की बात करें तो वर्ष 2015 में भी लखनऊ के मलिहाबाद के दतली गांव की जहरीली शराब 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। वहाँ विधवायें ही दिख रही थी पूरा गाँव विधवाओं से भर गया था। वर्ष 2016 में गोसाईगंज के मांढरमऊ गांव में कच्ची शराब पीने से दो लोगों की मौत की खबर ने हडकंप मचा दिया था। वहीं मुलायम ङ्क्षसह यादव की सरकार में वर्ष 2003 के सिंतबर में लखनऊ के कैसरबाग इलाके में शराब पीने से 16 लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2011 में वाराणसी में 12 लोगों की मौत हुई थी। गाजियाबाद-बुलंदशहर में मार्च 2010 में होली के अवसर पर अवैध शराब के सेवन के 35 लोगों की मौत हो गई थी। मायावती सरकार में भी वर्ष 2009 में आजमगढ़ में जहरीली शराब से 23 लोगों की मौत हुई थी।
उत्तर प्रदेश में 2003 से लेकर 2019 तक अवैध शराब ने बहुत से लोगों की जान ली चाहे जिस भी पार्टी की सरकार रही हो सभी ने तो दावे बहुत किये परन्तु उसपर खरी नहीं उतर सकी क्योंकि सरकार का राजस्व शराब से ही ज्यादातर आता है। एक तरफ सरकार नसा मुक्त करने की बात करती है दूसरी तरफ शासन के लोग चंद रुपयों के खातिर इसको बढ़ावा देते आ रहे हैं। शराब बंदी नहीं कर सकते एक तो राजस्व दूसरी ओ मजदूर तबकों और ड्राइवर ज्यादातर देशी शराब का ही इस्तेमाल करते हैं और चुनाव में भी देशी पिलाकर खूब वोट बटोरे जाते हैं।
यूपी के आलावा पश्चिम बंगाल में भी वर्ष 2011 में ऐसी त्रासदी हुई थी जिसमें लगभग 200 लोगों की जान गई थी। इस पर तो कोर्ट ने कड़ा रुख दिखाते हुए दोषियों को आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई थी। कर्नाटक में वर्ष 1981 ऐसी घटना हुई जिसने सभी को झकझोर दिया था बंगलरू में 308 लोगों की सस्ती शराब पीने से मौत हुई थी। ओडिशा में वर्ष 1992 में कटक में अवैध शराब से 200 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। मुंबई भी इससे अछूता नहीं रहा मायानगरी में भी वर्ष 2014 में विखरोली में जहरीली शराब से 87 लोगों की मौत हुई थी और वर्ष 2015 में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी उनमें ज्यादातर मजदूर और ड्राइवर ही थे। कर्नाटक में वर्ष 2008 में सस्ती शराब ने 180 लोगों की जान ली थी। पीएम नरेन्द्र मोदी की नगरी गुजरात में वर्ष 2009 में 136 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। इस घटना से गुजरात में भूचाल आ गया था और एक विधेयक पास किया गया था जिसमें अवैध शराब के कारोबार में दोषियों को साज-ए-मौत का कानून लाया गया था। बिहार में वर्ष 2017 में जहरीली शराब से चार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। जिस पर 22 पुलिसकर्मियों को लाईन हाजिर भी कर दिया गया था। जोधपुर को बासनी क्षेत्र हमेशा से ही देशी शराब का अड्ïडा रहा है। जनवरी वर्ष 2010 पाली शहर में 12 लोगों की मौत हुई थी।
राज्य सरकारों की आबकारी नीति में ढील का कारण हैं ऐसे मामले जब चाहे जिस तरफ मोड़ दिये जाते हैं। देशी शराब जितने दाम में चाहे बेचे काई रोक टोक नहीं है। 15 अगस्त और 26 जनवरी में रोक के समय भी चुपचाप बिक्री होती रहती है। त्यौहारों में भी जितना चाहें उतनी शराब की खपत होती है चाहे कितनी भी रोक क्यो न हो? हिन्दी क्षेत्रों में होली हो या दीपावली खूब देशी शराब की खपत होती रहती है, और त्यौराहों में सड़क हादसे का कारण एक यह भी है। राज्य सरकारों की पुलिस भी चंद पैसों के खातिर इस घिनौने खेल में शामिल रहती है।
गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट ने हो रहे सड़क हादसों को देखते हुए केंद्र व राज्य सरकारों से शराब के ठेकों को हाईवे से बाहर रखने को कहा था क्योंकि नेशनल हाईवे पर शराब की दुकानों की वजह से चालक अंधाधुध पी कर गाड़ी चलाते थे जिससे हादसे होते रहते थे। इन्ही ठेकों की वजह से ही बुलंदशहर की सामूहिक दुष्कर्म का मामला भी सामने आया था। जिसमें यह बताया गया था कि शराब हाईवे से ही खरीदी गई थी।
सभी राज्यों के प्रशासन की तभी नींद खुलती है जब इस तरह की अप्रिय घटनाएं होती हैं। सभी आबकारी विभाग के अधिकारी व कर्मचारी मोटी रकम लेते हैं और सिर्फ कुर्सियों में जाँच चलती है। बाद में मामला ठंडा होने के बाद फाइलें धूल फांकती रहती हैं। घटनाएं होने के बाद चहुओर छापेमारी और कार्रवाई की जाती है। बाद में कुछ समय बीतते ही सारा मामला ठंडा हो जाता है और फिर से पुन: की भाँति ही सारी क्रियाकलाप शुरू हो जाती है। इस पर क्या कहें क्या न कहें क्योंकि सब मामला पैसों का है।
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