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पटना : बिहार में कांग्रेस टूट की कगार पर है. पार्टी को टूट से बचाने के लिए सारी कवायद जारी है. आखिर, पार्टी इस कगार पर किन कारणों की वजह से पहुंची. क्या है इसके कारण और कौन है इसके पीछे. इन सवालों के आईने में बिहार में पार्टी की ताजा सियासी बेचैनी पर नजर डालने पर जो बड़ी बातें निकलकर सामने आ रही हैं, वह काफी चौंकाने वाली हैं. पार्टी के अंदर असंतुष्टों की एक फौज तैयार हो गयी है. वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष के कब्जे से पार्टी के नेता और विधायक पूरी तरह दूर हैं. गाहे-बगाहे केंद्रीय नेतृत्व से आने वाले नेताओं के सामने फोटो सेशन के लिए पार्टी के नेता एकजुट हो जाते हैं, लेकिन अंदर की स्थिति काफी दयनीय है.
पहला कारण – काफी अरसे के बाद बिहार में बेहतर स्थिति में पहुंची पार्टी के नेताओं में सत्ता सुख की लालसा पूरी तरह जोर मार रही है. महागठबंधन में थोड़े ही दिनों के सत्ता सुख ने उन्हें काफी सुकून दिया था. अचानक तेजस्वी वाले मसले पर केंद्रीय स्टैंड से पार्टी के विधायक नाराज हैं और दोबारा सत्ता में लौटने के इच्छुक हैं. कई विधायक जदयू के संपर्क में हैं.
दूसरा कारण – महागठबंधन में उपजे संकट के बाद नीतीश कुमार बार-बार कांग्रेस की दुहाई दे रहे थे कि उन्होंने बीच-बचाव कुछ नहीं किया और इसमें अपनी भूमिका बिल्कुल नगण्य कर दी. लालू यादव के प्रति पार्टी का सॉफ्ट कार्नर भी नेताओं को टूट की ओर धकेल रहा है. बहुत जल्द ही पार्टी में उथल-पुथल मच सकती है. लालू अपने तरीके से कांग्रेस को हांकते हैं, यह बात स्थानीय नेताओं को पता है, वह चाहते हैं कि जदयू में मिल जाने से उनका भविष्य और राजनीतिक कैरियर दोनों संवर जायेगा.
तीसरा कारण – पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 पर जीत कर आयी थी. पार्टी के कई नेता मंत्री भी बने थे. कांग्रेसी अरसे बाद सत्ता सुख का भोग कर रहे थे. अचानक जदयू के भाजपा के साथ चले जाने से इनके सत्ता सुख का सपना चकनाचूर हो चुका है. कुछ विधायकों को मंत्री पद का लालच भी दिया गया है. इनमें से कई विधायक अपनी शर्तों पर जदयू को समर्थन करने के मूड में हैं.
चौथा कारण- सियासी हलकों में चर्चा है कि नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी पार्टी का टिकट बांटने के साथ-साथ कांग्रेस के टिकट में भी हस्तक्षेप किया था, नीतीश ने अपने चहेते कांग्रेस नेताओं को टिकट दिलवाने में कामयाबी पायी थी, जिनमें से ज्यातर जीत गये थे, अब वह विधायक पूरी तरह नीतीश के सानिध्य में आने को बेकरार हैं.
5वां कारण – नीतीश कुमार के एहसान तले दबे ऐसे 10 विधायक लगातार जदयू के संपर्क में बने हुए हैं, वह कभी भी पार्टी से अलग रास्ता अपना सकते हैं. उनकी बातों को कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व भी नहीं समझ रहा है. महागठबंधन टूटने के बाद से इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि कांग्रेस के विधायक जदयू का दामन थाम सकते हैं. पार्टी नेतृत्व काफी देर कर चुका है.
6 ठा कारण – अंदरखाने से एक बात और सियासी फिजां में चर्चा में है कि कांग्रेस के विधायकों को राजद का साथ रास नहीं आ रहा है. पार्टी के कई सवर्ण विधायक बीजेपी से लगातार संपर्क में हैं. वह कभी भी पार्टी छोड़ कते हैं. महादलित समुदाय के कई विधायकों का रूझान जदयू की तरह झुकता नजर आ रहा है.
7वां कारण – बिहार के नेता और विधायक पार्टी के आलाकमान की चुप्पी को लेकर काफी परेशान हैं. कांग्रेस के अधिकांश स्थानीय विधायकों और नेताओं का मानना है कि केंद्रीय नेतृत्व के चलते ही यह दिन देखना पड़ा. पार्टी टूटने पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इसके कर्णधार केंद्रीय नेतृत्व के लोग हैं.
आठवां कारण- कांग्रेस राजद का साथ बहुत पुराना है. कुछ साल पू्र्व राहुल गांधी द्वारा लालू को लेकर दूरी बनाने की कवायद शुरू हुई थी, जिसका समर्थन स्थानीय नेताओं ने किया था. दोबारा लालू के साथ जुड़ना भी टूट का एक बड़ा फैक्टर है.
9वां कारण- सीताराम केसरी के जमाने से लालू का साथ दे रही कांग्रेस, लालू को छोड़ने के मूड में नहीं है. यह कारण भी विधायकों के मोहभंग होने का कारण है.
दस वां कारण- हाल में बिहार सरकार द्वारा तेजस्वी और तेज प्रताप के सरकारी बंगले को खाली करवाया गया, लेकिन कांग्रेस के नेताओं और मंत्रियों के साथ ऐसा नहीं किया गया. चर्चा का बाजार गरम है कि नीतीश कुमार ऐसा करके कांग्रेस के नेताओं को लुभा रहे हैं.
https://www.youtube.com/watch?v=w6cdBpoBLvo
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