बग़ैर इजाज़त कोई इबादत क़बूल नहीं

0
308
(3 मोहर्रम) कर्बला इंसानसाज़ी की दर्सगाह
Waqar Rizvi
अपने ख़ून से कर्बला की तारीख़ इमाम हुसैन ने अपने लिये नहीं बल्कि अपने नाना के दीन को बचाने और अपनी उम्मत की इस्लाह के लिये लिखी। मदीने से चलते वक़्त जब किसी ने उनसे इस सफऱ का मक़सद जानना चाहा तो उन्होंने बेसाख़्ता कहा कि उम्मत की इस्लाह के लिये जा रहा हँू और कर्बला के पूरे सफऱ के दौरान उन्होंने अपने ख़ुत्बों अपने अमल से अपनी उम्मत के लिये कय़ामत तक ऐसे दर्स दे दिये कि अगर उम्मत इसे समझे और मानें तो इन्शाअल्लाह उसे आख़ेरत में किसी दुश्वारी का सामना न करने पड़ेगा।
कर्बला की सरज़मीन पर क़दम रखते ही सबसे पहला सवाल किया कि इस ज़मीन का मालिक कौन है ? ज़मीन का मालिक सामने आया तो उससे ज़मीन की क़ीमत पूछी और बतायी गयी क़ीमत फ़ौरन अदा कर कर्बला की ज़मीन खरीद ली और फिर फऱमाया अब ये ज़मीन हमारी मिल्कियत है, लेकिन हम तुम्हें हिबा करते हैं, बस इतना ख़्याल रहे कि जहां हमारी क़ब्रें बनें तो हमारी क़ब्रों के गिर्द किसी को खेती ना करने देना, कोई हमारी लहद का पता पूछता हुआ आये तो उसे निषाने क़ब्र बता देना, कोई मुसाफिऱ हमारी जिय़ारत को आये तो उसे मेहमान रख लेना, हाँ एक बात का और ख़्याल रखना कि जब हमारी दुष्मन फ़ौजें हमारी लाषों को बेगुरू कफन छोड़कर चली जायें तो तुम आकर हमें दफ्ऩ कर जाना।.
कर्बला वाले आज भी इमाम हुसैन की इस वसियत पर अमल कर रहे हैं जाने वाले जानते हैं कि उनका क्या हुस्नो सुलूक कर्बला आने वाले ज़ायरीन के साथ रहता है।
इमाम हुसैन ने अपने इस अमल से बता दिया कि एक लम्हें भी अज़ीम से अज़ीम इबादत भी किसी दूसरे की ज़मीन पर बिना उसकी इजाज़त जायज़ नहीं, यह उन लोगो के लिये लम्हे फि़क्रया है जो अपने मकान मालिक से बरसों से मुक़दमें लड़ रहे हैं और उसी मकान में इबादत कर रहे हैं, मजलिस कर रहे हैं और तमाम ज़ाकिरीन इससे अनजान उन्हें जन्नत की बशारत दे रहे हैं। हद तो यह है मंशऐ वाकिफ़़ के खि़लाफ़ इमाम की मिल्कियत पर भी तमाम अफऱाद क़ाबिज़ हैं, आज अपने को हुसैन का अज़ादार कहने वाले ही वक्फ़़ की जायदाद बेच रहे हैं और खऱीदने और क़ब्ज़ा करने वाले कोई और नहीं, यह वो ही हैं जो अपने को हुसैन का अज़ादार कहते हैं।
यह मजालिस इंसानसाज़ी का ऐसा शाहकार हैं जहां इंसान बनाये जाते हैं, इबादत का सलीक़ा सिखलाया जाता है, हराम और हलाल का दर्स दिया जाता है, इमाम हुसैन की क़ुरबानी के मक़सद को बाक़ी रखने के लिये ही यह जि़क्रे हुसैन है नाकि सिफऱ् वाह वाह और एक दूसरे पर तनक़ीद और छीटाकशी करने को। जि़क्र हुसैन से ऐसे बने कि मौला भी कहें कि यह हमारा शिया है।
Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here