फ़िल्म ब्लैक फ्यूचर की पटकथा,संवाद तथा गीत लेखक ध्रुव चन्द्र ने अपने साक्षात्कार में बताया कि इस फ़िल्म में उन्होंने स्वयं खलनायक की सशक्त भूमिका निभाते हुए संदेश देने का प्रयास किया है।कि यदि संसार स्त्री विहीन हो जाये तो जीवन कितना नीरस हो जाएगा।वास्तव में स्त्री है तभी पुरुष का भी अस्तित्व है और यदि स्त्री न हो तो पुरुषार्थ का भी अर्थ नहीं होगा।पुरुषों के जीवन के समस्त मुख्य संघर्ष तभी प्रारम्भ होते हैं जब उसके जीवन में स्त्री का प्रवेश होता है।मकान,वाहन,बच्चों का पालन पोषण,शिक्षा दीक्षा,वस्त्र आभूषण,भोजन व्यवस्था की गुणवत्ता आदि सभी की पृष्ठभूमि में किसी न किसी रूप में स्त्री ही कारक बनती है।इस फ़िल्म में घटते लिंगानुपात के कारण उस समय की परिकल्पना की गई है। जब लिंगानुपात घटते घटते एक दिन समाज स्त्री विहीन हो जाता है।तो मनुष्य में जीवन की रोचकता समाप्त हो जाती है और वह राक्षसरूपी जीवन व्यतीत करता है तथा स्त्री जाति के स्वरूप तक को भूल जाता है।उस समय के समाज की परिकल्पना को फ़िल्म में इतना भयावह और विकृत रूप से दर्शाया गया है कि दर्शकों में स्त्री के महत्व को समझने की प्रेरणा जागृत होती है।इस फ़िल्म में खलनायक टांसे इस धरती को स्त्रीविहीन करने की ठान लेता है और तलवार लेकर ताण्डव करता है।पूरी फिल्म संघर्ष में जूझती रहती है और अंततः नायक की पत्नी उस समय एक बालिका को जन्म देती है।जब वह चारो ओर से राक्षसरूपी पुरुषों से अपने प्राणों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही होती है।उसी समय उसका ससुर उसकी रक्षा के लिए आता है और कन्या को देवी मानकर उसके चरणस्पर्श करके पुनः सृष्टि की संरचना के लिए आश्वस्त होता है और इस प्रकार फ़िल्म अपना संदेश देने में सफल रहती है साथ ही फ़िल्म के रोचक गीत भी दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।इस फ़िल्म में संगीत हेम व गणेश ने दिया है।इसके निर्देशक ध्रुवसत्यशिशिर,क्रिएटिव निर्देशक एल.साहब तथा निर्माता बिजैबारिक रीता व शशी हैं।
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