न्यायपालिका खतरे में

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न्यायपालिका खतरे में
सैयद निजाम अली रिज़वी
आजादी के ७१ साल में पहली बार न्यायपालिका का अस्तित्व ही खतरे में पड़ता दिखाई पड़ रहा है। सरकार कोलेजियम की बात नहीं सुन रही है। सर्वोच्च न्यायालय के चार सबसे सीनियर जज पहली बार प्रेस कांफ्रेस करके मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ बोल रहे है। सात मुख्य विपक्षी दल मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिए कोशिश में थे लेकिन राज्यसभा के सभापति और उप राष्ट्रपति ने इस नोटिस को ही खारिज कर दिया। कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्यायापालिका इस वक्त गंभीर संकट में है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के क्रियान्वयन में हीलाहवाली हो रही है। सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश को हिमाचल प्रदेश में क्रियान्वित करने पहुंची महिला अधिकारी से पहले बहस की गयी और फिर उसको गोली मार दी गयी जबकि पुलिस मूक दर्शक बनी खड़ी रही। सर्वोच्च न्यायालय को कहना पड़ा कि अब आदेश देने के बारे में भी सोचना पड़ेगा।
सर्वोच्च न्यायालय का कह रहा है कि ४६ फीसदी मुकदमों में केंद्र सरकार पक्षकार है। विश्व के सात अजूबों में से एक ताजमहल की हालत बदतर हो जा रही है। केंद्र सरकार कुछ नहीं कर रही है।
मुख्य न्यायाधीश अपनी मर्जी से पीठ का गठन कर रहे हैं । सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय न्यायाधीशों की समिति (कोलेजियम) ने उत्तराखंड के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश  के एम जोसेफ को शीर्ष अदालत में पदोन्नित  देने की सिफारिश पर फिर से विचार के मुद्दे पर  बुधवार को अपना निर्णय टाल दिया। सरकार ने न्यायाधीश जोसेफ की फाइल पुनर्विचार के लिए लौटा दी थी। देखा यह गया है कि कोलेजियम की सिफारिश को कभी सरकार टालती नहीं लेकिन यहां मामला न्यायाधीश जोसेफ का था। उन्होंने ही उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने वाले आदेश को निरस्त कर दिया था। इसके बाद से ही वह सरकार की गुड बुक से गायब हो गये जबकि उनका इसी साल के आखिर में रिटायरमेंट है। सर्वोच्च न्यायालय सहित  सभी न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी है।
सारा देश कह रहा है कि अगर न्यायपालिका कमजोर हो गयी तो जो हाल पाकिस्तान का हुआ वही यहां का भी होगा। जिस जगह तानाशाही की शुरूआत होती वहां सबसे पहले न्यायापालिका को कमजोर कर दिया जाता है। अब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण)     अधिनियम १९८९ पर पुर्नविचार याचिका में ३ मई को सर्वोच्च न्यायालय में अटार्नी जनरल ने कहा कि अदालत को कानून बनाने का अधिकार नहीं है। उधर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना उसका काम है। हाल के सालों में देखा यह जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की सरकारें खुलमखुला अवेहलना कर रही है। राजनेता ही नहीं आईएएस अधिकारी तक        अदालतों के आदेशों की परवाह नहीं करते, अदालत की अवमानना में भी अधिकारी अनदेखी करते है और जब अदालत उनके वारेंट जारी करती है तब जाकर अधिकारी अदालत में हाजिर होकर माफी मांग लेते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के चार  सीनियर जजों ने कहा कि अगर अभी हालात को नहीं सुधारा गया तो आने वाली नस्ले हमें माफ नहीं करेगी। संविधान निर्माताओं ने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका को बराबर का अधिकार दिया था लेकिन मौजूदा दौर में विधायिका व न्यायपालिका को कमजोर करने की गहरी साजिश की जा रही है।
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