नबियों ने भी अपना रिज़्क़ मेहनत मज़दूरी से हासिल किया फिर हमारे मोलवी ………….
वक़ार रिज़वी
क़ुरआन में लव्ज़े अमल 365 बार आया है आसान अलफ़ाज़ में अगर इसे कहें तो क़ुरआन में कोई भी दिन छुटटी का नहीं है, हर एक दिन काम करना है, हर दिन अपनी कोशिशें जारी रखनी हैं, हर दिन अपने को अल्लाह के नज़दीक करना है अपने अच्छे मक़सद के नज़दीक करना है यही वजह है कि अल्लाह ने इस मेहनत से आज़ाद मोजिज़ा करने वाले अपने ख़ास बन्दों को भी नहीं रखा। हज़रत आदम मोजिज़ा रखते थे, हज़रत नू, हज़रते ईसा तमाम नबियों के हाथ में मोजिज़ा था, वह चाहते तो मोजिज़े से रिज़्क कमाते लेकिन अल्लाह ने उनसे भी कहा मेहनत करो, कोशिश करो, जो कोशिश करेगा उसको मिलेगा हत्ता वह अम्बिया जो ज़मीन से ख़ाक उठा कर उसे गौहर बना सकते थे उसको ख़ज़ाना बना सकते थे अल्लाह ने उनसे भी कहा इसे रिज़्क का ज़रिया नहीं बनाना। मेहनत करके कमाओ, मेहनत करके खाओ, मेहनत करके लोगों को अपनी तरफ लेकर आओ यह नही कहा कि मोजिज़ा दिखाओ सबका दिल बदल दो सबकी नीयत बदल दो नहीं कोशिश करो यह जैसे हैं वैसे ही रहेगें आपको इन्हें कनवेंस करके लाना है।
हज़रत नू कारपेन्टर थे वह कारपेन्टर थे तो अपने लिये रिज़्क का बंदोबस्त कारपेंटरी करके करते थे, हज़रते दाउद लोहार थे, लोहार थे तो अपने लिये रिज़्क़ का बंदोबस्त लोहारी करके करते थे हज़रते इदरीस टेलर थे, कपड़े सीते थे, तो वह दूसरों के कपड़े सी कर अपने और अपने घरवालों के लिये रिज़्क़ का बंदोबस्त करते थे हज़रते हूद और सालेह बिज़नेस करते थे, तिजारत में दिन रात मेहनत ओ मशक्कत करते थे तो अपने घर वालों के लिये रिज़्क़ मोहयया करते थे। हज़रत याक़ूब और युसूफ़ किसान थे खेती करते थे दिन रात खेतों में काम करते थे तो अपने घर वालों के लिये रिज़्क़ का इन्तेज़ाम करते थे, हमारे अपने नबी रसूल अल्लाह वालै वस्सलम चरवाहे थे वह जाते थे दूसरों के जानवरों को लेकर फिर हमारे ही नबी थे जो जनाबे ख़तीजा का माल लेकर जाते थे उसे बाज़ारों में बेचते थे अमीरल मोमनीन अली इब्ने अबू तालिब मज़दूर थे मज़दूरी करते थे दूसरों के बाग़ में काम करते थे तो रोज़ी कमाते थे और अपने घर वालों के लिये रिज़्क़ का इन्तेज़ाम करते थे। अल्लाह ने हर एक के लिये सई हर एक के लिये कोशिश हर एक के लिये जददोजहेद रखी कोई ऐसा नहीं है कि हाथ पर हाथ रखे मोजिज़ा होता रहे और रिज़्क़ आसमान से उतरे।
यह तक़रीर मोहतरमा ज़किया बुतूल नजफ़ी की आजकल सोशल मीडिया पर बहुत गश्त कर रही है और इसे जो सुन रहा है वह अपने तरीक़े से समझ कर इसकी तशरीह कर रहा है कोई कह रहा है कि यह उन ज़ाकिरों के लिये है जो कोई काम नहीं करते बस ज़िक्रे हुसैन को अपने और अपने घर वालों के लिये रिज़्क़ का ज़रिया बनाये हुये हैं कोई कहता है कि यह उन मोलवियों के लिये है जो कोई काम नहीं करते बस ख़ुम्स और ज़कात पर क़नाअत करते हैं और इसी पर सब्र शुक्र करके इससे ही अपने घर वालों के लिये रिज़्क मोहयया कर लेते हैं। जितने मूंह उतनी बातें, कोई कह रहा है कि जब उलूल अज़्म पैग़म्बर अपने रिज़्क़ के लिये मेहनत और मज़दूरी करते थे तो हमारे मोलवी मेहनत और मज़दूरी क्यों नहीं करते ? ऐसे तमाम अफ़राद की ख़िदमत में अर्ज़ है कि ऐसा नहीं है कि हमारे यहां कोई मेहनत और मज़दूरी या कारोबार नहीं करता। तमाम बड़े मदरसे जहां से पढ़कर बड़े बड़े आलिमदीन दीन की ख़िदमत कर रहे हैं वह इन्हीं मदरसों की देन हैं, हमारे ही उलेमा दुनियावीं तालीम के लिये बड़े कान्वेंट कालेज चला रहे हैं, हमारे ही मोलवी इसी शहर में कई ‘‘सेवा चिकन’’ के बड़े बड़े शोरूम खोलकर बिज़नेस कर रहे हैं, हमारे ही ज़ाकिरे हुसैन यूनिर्वसिटयों और कालेजों में पढ़ा कर अपने घर वालों के लिये रिज़्क़ मोहयया कर रहे हैं। अब कोई यह न कहने लगे कि आपका उनके बारे में क्या ख़्याल है जिनका मुताअला बस ख़ैबर और ख़दंक तक ही महदूद है लेकिन इक़तेलाफ़ी मालूमात लामहदूद वह भी कम मेहनत नहीं करते, क़ौम में इक़तेलाफ़ फैलाने से लेकर शहर में फ़साद कराने तक वह भी इसके लिये जी तोड़ मेहनत करते हैं ?
मुझे नहीं मालूम मोहतरमा ज़किया बुतूल नजफ़ी की तक़रीर कितनी हक़ीक़त पर मबनी है अगर यह वाक़ई हक़ीक़त पर मबनी है तो हम सब के लिये लम्हें फ़िक्रिया है।
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