वकार रिजवी
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चाय वाले पकौड़े वाले, मज़दूर, होटल वालें, रिक्शे वालें, आटो वालें, टैक्सी वाले, छोटे बड़े किराना स्टोर, मैरेज हाल जैसे कारोबारी भी हैं, जो रोज़ कमाते हैं रोज़ खाते हैं, यह सब इतवार को भी कमाते हैं और शनिवार को भी, रामनवमी को भी कमाते हैं अम्बेडकर जयंती पर भी, यह तो जिस दिन काम न करें उस दिन इनके घर चूल्हा न जले, इनके लिये तो सप्ताह के सभी दिन बराबर हैं, और गोदी मीडिया मोदी जी महानता को साबित करने के लिये बता रहा है कि मोदी जी ने बड़ी चतुराई से, बड़ी समझदारी से लाक डाउन की यह तारीख़े रखीं जिसमें 3 इतवार है 3 शनिवार हैं, गुड फ़्राइडे है, रामनवमी है, यानि 21 दिन के लाकडाउन में 11 दिन छुटटी के हैं अब इन्हें कौन बतायें कि रोज़ कमाने वाले रोज़ खाने वालों का इन छुटिटयों से क्या लेना देना।
दूसरी तरफ़ वह कारोबारी हैं जिनका काम भी पूरी तरह से बन्द हो गया और ख़र्चे भी ज्यों के त्यों बने हुये हैं उसपर सितमज़रीफ़ी यह कि मुलाज़िमों के हुक़ूक़ में ज़र्रा बराबर भी हर्फ़ न आये, न उन्हें हटाया जाये, न उनकी तनख़्वाह कम हो और न उनके कनवेंस एलाउंस में कोई कटौती हो चाहे इस दौरान उनकी गाड़ी पर कितनी ही धूल जमा होती रहे। दूसरी तरफ़ मेडिकल, पुलिस और मीडिया कर्मियों को छोड़कर सब घर बैठकर अपना पूरा वेतन ले रहे हैं और दिनभर टी.वी. पर मज़े से कोरोना वायरस का इस्लामीकरण होते देख रहे हैं जबकि कारोबारी पूरी तरह से तबाही की कगार पर हैं जिनका कारोबार पूरी तरह से लाकडउन हो गया, और कब तक रहेगा इसकी दूर तक कोई ख़बर नहीं ? इनके लिये अभी तक सरकार के पास न कोई स्पष्ट नीति है और न कोई राहत देने वाले पैकेज की घोषणा।
इसलिये आस्था से ऊपर उठें, सरकार का साथ दें, गोदी मीडिया से बचें, मोदी जी की सुने, अपनी भी सुरक्षा करें और दूसरों को भी सुरक्षा दें।