गंगा जमुनी तहज़ीब के अलमबरदार- हाशिम रज़ा जलालपुरी 

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गंगा जमुनी तहज़ीब के अलमबरदार- हाशिम रज़ा जलालपुरी
नहीं है ना उम्मीद इक़बाल अपनी किश्ते वीरां से
ज़रा नाम हो तो यह मिटटी बड़ी ज़रखेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
जलालपुर की धरती पर खुदा का ख़ास करम है, यहाँ की मिटटी बहुत ज़रखेज़ है। पदमश्री अनवर जलालपुरी साहब ने श्रीमद भगवत गीता का उर्दू शायरी में अनुवाद करके जो सिलसिला शुरू किया था अब उनके बाद उस सिलसिले को आगे बढ़ा रहे हैं नौजवान शायर हाशिम रज़ा जलालपुरी। मीरा बाई जिन्होंने तमाम उम्र मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम आम किया, उनकी शायरी को उर्दू शायरी में अनुवाद करके हाशिम रज़ा जलालपुरी ने जो कारनामा अंजाम दिया है, उनकी जितनी सराहना की जाए कम है। मीरा बाई हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी शायरा हैं। साहित्य की दुनिया में मीरा बाई उस मुक़ाम पर फ़ाएज़ हैं जहाँ पर कोई और शायरा नहीं पहुँच सकी है। हाशिम रज़ा जलालपुरी ने मीरा बाई के 209 पद को 1494 अशआर के रूप में अनुवाद किया है।
हाशिम रज़ा जलालपुरी का तअल्लुक़ पदमश्री अनवर जलालपुरी और यश भारती नैयर जलालपुरी की धरती जलालपुर से है। जलालपुर की सरज़मीन ने अदब और शायरी को कई नायाब गौहर अता किये हैं, जिन में ज़ाहिद जाफरी, फाखिर जलालपुरी, फ़िराक़ जलालपुरी नुमायां नाम हैं। हाशिम रज़ा जलालपुरी ने 27 अगस्त 1987 को जलालपुर के मोहल्ला करीमपुर, नगपुर में आँखें खोलीं। ज़ुल्फ़िक़ार जलालपुरी उनके वालिद हैं, जो नौहा, सलाम और मन्क़बत के मारूफ शायर हैं, जिनके कलाम “18 भाईओं की बहन क़ैद हो गयी” को आलमी मक़बूलियत हासिल हो चुकी है।
हाशिम रज़ा जलालपुरी ने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में एमटेक और रोहिलखण्ड यूनिवर्सिटी बरेली से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल की। पिछले साल 2017 में उन्होंने रोहिलखण्ड यूनिवर्सिटी बरेली से उर्दू साहित्य में एमए किया। हाशिम रज़ा जलालपुरी को साउथ कोरिया की चोन्नम नेशनल यूनिवर्सिटी ग्वांगजू में नैनो फोटोनिक्स इंजीनियरिंग में रिसर्च के लिए ग्लोबल प्लस स्कालरशिप भी मिल चुकी है। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंसों में वह अपना रिसर्च पेपर पढ़ चुके हैं। इसके अलावा हाशिम रज़ा जलालपुरी को अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ और रोहिलखण्ड यूनिवर्सिटी बरेली में लेक्चरर के तौर पर काम करने का अनुभव है।
जलालपुर हमेशा से सेक्युलरिज़्म का मरकज़ रहा है। जहाँ अज़ान और भजन की आवाज़ ऐक साथ सुनाई देती है, जहाँ सभी त्यौहार ईद, मुहर्रम, होली, दीपावली सभी संप्रदाय मिलजुल कर मनाते हैं, जहाँ हिंदू मुसलमान शिया सुन्नी एक दूसरे के सुख दुख में बिना किसी भेदभाव के खुले दिल से शरीक होते हैं। पदमश्री अनवर जलालपुरी ने श्रीमद भगवद गीता का उर्दू में अनुवाद कर के जो सिलसिला शुरू किया था हाशिम रज़ा जलालपुरी उस सिलसिले को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। हाशिम रज़ा जलालपुरी, पदमश्री अनवर जलालपुरी के बहुत क़रीब रहे हैं और उन्हीं को अपना रोल मॉडल मानते हैं। हाशिम रज़ा जलालपुरी हिंदुस्तान भर के मुशायरों में शायर और नाज़िम के तौर पर शिरकत भी करते हैं। उनकी ग़ज़लें और मज़ामीन हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के बाहर विभिन्न अख़बारों और रिसालों में बराबर शाया होती रहती हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें खासी प्रसिद्धि हासिल है, उनकी ग़ज़लें रेख्ता पर भी पढ़ा जा सकती है।
नसीब पढ़ के मिरा इल्म-ए-ग़ैब की देवी
यक़ीन जानिए बेहोश होने वाली थी
हादिसा इश्क़ में दरपेश हुआ चाहता है
दिल शहंशाह से दरवेश हुआ चाहता है
लश्कर-ए-ख़्वाब किसी तौर उतर आँखों में
रात भर नींद का रस्ता नहीं देखा जाता
जाने कब जा के मिरा इश्क़ मुकम्मल होगा
रक़्स करते हुए गाते हुए थक जाता हूँ
ग़रीब-ए-शहर ने रक्खी है आबरू वर्ना
अमीर-ए-शहर तो उर्दू ज़बान भूल गया
ज़मीं पे चाँद सितारे बिछा के ऐ ‘हाशिम’
फ़लक पे फूल सजाने की आरज़ू करते
ज़मीं पे टपका तो ये इंक़लाब लाएगा
उसे बता दो, वो मेरे लहू से दूर रहे
मेरे मौला तिरी मंतिक़ भी अजब मंतिक़ है
होंट पे प्यास रखी आँख में दरिया रक्खा
ज़मीनों में सितारे बो रहा हूँ
मुझे हरगिज़ न कहना रो रहा हूँ
यही दुनिया कि जिसे क़द्र नहीं है मेरी
यही दुनिया कि बहुत याद करेगी मुझ को
(हाशिम रज़ा जलालपुरी)
मीरा बाई जिन्होंने ने अपनी पूरी ज़िन्दगी मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम आम करने में वक़्फ़ कर दी। हाशिम रज़ा जलालपुरी ने उनकी शायरी का उर्दू
शायरी में अनुवाद कर के गंगा जमुनी तहज़ीब के फ़रोग़ के लिए इंतिहाई अहम काम किया है। समाज के बड़े लोगों को आगे आकर इस किताब को हाथों हाथ लेना चाहिए ताकि हमारे मुल्क में मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम पूरी आबोताब के साथ आम हो सके। हाशिम रज़ा जलालपुरी ने समाज के दो वर्गों को जोड़ने का काम किया है। खुदा करे उनका क़लम यूँही चलता रहे और मोहब्बत का पैग़ाम शहर दर शहर और मुल्क दर मुल्क आम होता रहे।
सैयद आबिद हुसैन
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