वकार रिज़वी
क्या वास्तव में CAA एक बहाना है आर्थिकमंदी निजीकरण, रोजग़ार, कारोबार, जी.एस.टी. से ध्यान भटकाने का, अगर नहीं तो क्या ज़रूरत थी इतने शोर शराबे, इतने हंगामें के साथ इस नये CAA की जबकि पहले से ही हिन्दु, सिख, इसाई, पारसी, जैन, बौद्ध शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान मौजूद था। क्या इस नये क़ानून से पहले अगर कोई मुस्लिम शरणार्थी भारत की नागरिकता मांगता तो उसको नागरिकता देना सरकार की मजबूरी थी? क्या किसी भी शरणार्थी को नागरिकता देने या न देने का पूरा अधिकार सरकार के पास नहीं था? क्या अब कोई मुस्लिम शरणाथी भारत में कभी नागरिकता नहीं मांग पायेगा? अगर मांगेगा, तो क्या उसे भारत की नागरिकता देना सरकार की मजबूरी होगी? अगर पहले भी नागरिकता देने या न देने का पूरा अधिकार सरकार के पास ही था और अब भी मुस्लिम पुराने क़ानून के तहत नागरिकता के लिये आवेदन कर सकते हैं, तो फिर इस नये क़ानून की ज़रूरत क्या पड़ी? अगर कुछ नया करना ही था कुछ बंग्लादेश, अ$फगानिस्तान और पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिये कुछ विशेष प्रेम दर्शाना ही था तो आसान था कि कह दिया जाता कि बंगला देश, पाकिस्तान, अ$फगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को धार्मिक उत्पीडऩ के आधार पर भारत की नागरिकता दी जायेगी? तो भी मुसलमान इस दायरे में नही आते और अगर ऐसा होता तो फि र न पूरे भारत में आदोंलन होता न संविधान की दुहाई दी जाती, न सड़क पर छात्र होते और न यूनीवर्सिटी की लाईब्रेरी में पुलिस। तो क्या सरकार को कुछ ऐसा लगा कि 370 और अयोध्या में रामलला के मन्दिर बनने का रास्ता साफ़ होने से वह विरोध नहीं हुआ जिसकी उसने कल्पना की थी इसलिये उसने एक ऐसा एक नया शोशा छोड़ा जिसमें पूरा देश लग जाये, हर तरफ़ हिन्दु मुस्लिम की चर्चा हो जबकि यह सरकार उतनी मुस्लिम विरोध है नहीं जितना अपने को दिखाने का प्रयास करती है जबकि इसके विपरीत कांग्रेस ने तो पहले से ही वह सारे क़ानून बना रखे हैं जिससे मुसलमानों के साथ जब चाहे जो चाहे वह करे और उसने किया भी, अगर किया न होता तो सच्चर कमेटी की रिपोर्ट यह हरगिज़ न कहती कि हिन्दुस्तान में आज मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर है। बस उसने जो काम किया ख़ामोशी से किया बिना किसी शोर शराबे के किया, ऐसे किया कि सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी, ख़ामोशी इतनी कि रात के अंधेरे में मस्जिद में मूर्तिया रखवा दीं और 70 साल तक किसी को पता नहीं चला, दिन के उजाले में मंदिर का ताला खुलवा दिया फिर मस्जिद को भी शहीद करा दिया और भाजपा की 3 सरकारें भी गिरा दीं और एक इल्ज़ाम भी नहीं लगा, उसकी पुलिस ऐसी कि 42 मुस्लिमों को पी.ए.सी. की गाड़ी में बैठाला और सबको गोली मारकर नदी के किनारे डाल दिया। सबकुछ किया लेकिन अपने ज़बान से कभी हिन्दु मुस्लिम का नाम नहीं लिया इसीलिये हिन्दु कभी अपने ऊपर गर्व नहीं कर पाया और मुसलमान कभी दहशत में नहीं रहा हर हादसे को हादसा समझ कर टाल दिया न कभी आज जैसी मुसलमान और हिन्दुओं के बीच दरार पैदा हुई न नफऱतें परवान चढ़ीं न एक दूसरे ने कभी एक दूसरे के खि़लाफ़ विश्वास खोया, सभी अपने को भारतीय समझते रहे और जी जान से देश की तरक़्क़ी के लिये कोशिश करते रहे लेकिन कल की तरह मुसलमानों के पास आज भी कुछ करने को नहीं है और दूसरे तर$फ हमारे हिन्दु भाईयों के पास कुछ हो न हो लेकिन गर्व करने को बहुत कुछ है।
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