एशियाई देशो में चीन अपना प्रभाव लगातार बढ़ा रहा है. और इस क्रम में चीन ने नेपाल को अपनी चार बंदरगाहों का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी है. कई एशियाई देश पहले ही चीन के कर्ज़ मे डूबे हुये हैं. वही अब चीन अपने संसाधनो और अपनी ज़मीन को इस्तेमाल करने की अनुमति दे कर एक नयी कूटनीति पर कम कर रहा है.
माना जा रहा है कि चीन का यह कदम भारत को दूसरे एशियाई देशो से अलग-थलग करने के लिए है. लेकिन ये इतना आसान भी नहीं होगा. चीन अपनी महत्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट वन रोड परियोजना’, जिसको बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के नाम दिया गया है, पर काम कर रहा है और साल 2013 मे शुरू होने वाली इस परियोजना में 70 से अधिक देश जुड़ चुके हैं. साथ ही कई एशियाई देश इस परियोजना से नाखुश भी हैं जिसमे भारत भी शामिल है. और खुद को अलग किए हुये है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 7 सितंबर 2013 को कज़ाखिस्तान की नज़रबयेव यूनिवर्सिटी में एक भाषण देते हुए इस परियोजना की घोषणा की थी.
दरअसल एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बीआरआई का स्वागत अधिकतर उन देशों ने किया है जहां आधारभूत ढांचा बहुत अच्छा नहीं था. इन देशों में चीन ने रेलवे, सड़क और बंदरगाहों के निर्माण की कई योजनाएं शुरू की.
दूसरी तरफ इस परियोजना में शामिल कई देश चीन से नाराज़ भी हैं जिस की सबसे बड़ी वजह इन देशो मे चीन का फैलता कर्ज़ का जाल है.
कर्ज़ मे डूबे देशो में सबसे पहले श्रीलंका का नाम सामने आता है. श्रीलंका चीन की तरफ से दिये गए 140 करोड़ डॉलर का अक्र्ज़ चुकाने मे नाकामयाब रहा जिसकी वजह से श्रीलंका ने अपना हम्बनटोटा बंदर
गाह को चीन की एक फर्म को 99 वर्षो के लिए इस्तेमाल करने के लिए दे दिया है.
एशियाई देशो मे पाकिस्तान को चीन का सबसे अच्छा और भरोसेमंद दोस्त माना जाता है और कई मौको पर पाकिस्तान ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि बीजिंग और इस्लामाबाद के आपसी संबंध काफी मधुर हैं.
लेकिन पाकिस्तान भी बीआरआई परियोजना मे शामिल होने के बावजूद खुश नहीं है जिसकी सबसे बड़ी वजह चीन-पाकिस्तान के बीच एक आर्थिक गलियारा का निर्माण काम है. इसके लिए कुल 6 हज़ार करोड़ डॉलर का खर्च सुनिश्चित हुआ है. पाकिस्तान के लिए यही रकम जी का जंजाल बन रहा है.
पाकिस्तान मे नवनिर्वाचित सरकार के के सांसद सांसद सैयद शिबली फ़राज़ ने सऊदी की एक वेबसाइट अरब न्यूज़ से कहा है कि पिछली सरकार ने उनके साथ इस आर्थिक गलियारे से जुड़ी योजना की कोई जानकारी साझा नहीं की है. म्यांमार, इंडोनेशिया भी ऐसे देशो की सूची में हैं जो चीन के कर्ज़ जाल मे फंसे हुये हैं.
एक तरफ चीन के सरकारी अखबार बीआरआई परियोजना की सफलता की गाथाएँ लिख रहें हैं वही इस परियोजना से जुड़े देशो की नाराजगी एक अलग ही संदेश दे रही हैं.