बच्चे के पहले शिक्षक माता पिता होते हैं और घर उसकी पहली पाठशाला। ये बात हमने आपने बहुत बार सुनी होगी और जो माँ और बाप हैं वो इस बात को समझ सकते हैं। एक अभिवावक के तौर पे हम बच्चों को सबसे बेहतर शिक्षा देने का प्रयास करते।शिक्षा में शायद ही कोई अभिभावक किसी प्रकार की कोई कमी नही रखता होगा।
शिक्षा ही बेहतर भविष्य का सबसे मजबूत स्तम्भ होता है
जीवन मे माँ बाप का योगदान शायद किसी लेख या कुछ शब्दों का मोहताज नही है, या यूं कहें कि शब्दों में उसे समाहित ही नही किया जा सकता।
आज का माहौल लोगो से आगे बढ़ने का है. प्रतियोगी माहौल में जैसे ही बच्चा 3-4 साल का होता है माता पिता उसके स्कूल के लिए चिंतित हो जाते हैं। बेहतर से बेहतर स्कूल, बेहतर से बेहतर सुविधाएं सभी कुछ अपने सामर्थ्यानुसार व्यवस्था करते हैं।आज शिक्षा केवल बच्चों की नही राह गयी उसके साथ साथ उनके माँ बाप की भी हो गयी है। जिस प्रकार से आज कल का पाठ्यक्रम हो गया है उस को बच्चों को पढ़ाने के लिए मा बाप को भी पढ़ना पड़ता है।
ये बात तो हो गयी बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा की। पर जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं ,अभिभावकों की चिंता और बढ़ती जाती है। लगातार महंगी होती आज कल की पढ़ाई उनके लिए एक चिंतनीय विषय है। उस चिंता से अधिक बच्चे की रुचि को पहचानना है। कि बच्चा किस क्षेत्र में बेहतर कर रहा है उसका भविष्य किस दिशा में बन सकता है और क्या जिस क्षेत्र में वो जाना चाहता है या उसकी रुचि है उस क्षेत्र में आगे की पढ़ाई का खर्च वहन कर पाएंगे। और अगर नहीं कर पायेंगे तो फिर से एक बार माँ बाप जुट जाते हैं अपना पेट काट के उस खर्च को पूरा करने में। एक पिता बैंको के चक्कर लगता है, हिसाब लगाता है कि कितने दिन में ये लोन पूरा होगा। और फिर वो अपने बच्चों को वो पंख खरीद के ला ही देता है जिस की उसने कभी कल्पना नही की थी, और उन पंखों के सहारे उड़ते अपने बच्चों को देख कर वो सुकून पाता है।
पर जब कुछ बच्चे उन पंखों को लगा कर दूर निकल जाते हैं, जहां से वो वापिस है नही आना चाहते, जब उन्हें लगता है कि उड़ान तो उनकी स्वयम की है इसमें माँ बाप ने क्या किया तब भी माँ बाप किनारे बैठ कर लोगों से उसकी ऊंची उड़ान की गाथा गाते हैं, और एक उम्मीद में रहते हैं कि कभी तो वो आएगा उड़ते हुए इस किनारे भी…………………………………………………………………………………………………………………………
लेखक
किसलय मिश्र
समाज सेवक
7275199197
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