उर्दू और हिन्दी भाषा में अन्तर करना बहुत मुश्किल काम है…………………

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ABHISHEK CHATURVEDI………………
उर्दू का अन्य भाषाओं से सम्बंध विषयक संगोष्ठी संपन्न हुई

उर्दू और हिन्दी भाषा में अन्तर करना बहुत मुश्किल काम है
लखनऊ। मसीहा उर्दू सोसाइटी के द्वारा शनिवार को उर्दू भाषा का अन्य भाषाओं से जुडाव विषयक संगोष्ठी का राजधानी के प्रेस क्लब में आयोजन किया गया । सोसाइटी के संस्थापक डॉ मसीहउद्दीन खान ने कहा कि राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के सहयोग से एक राष्ट्रीय संगोष्ठी उर्दू का दूसरी भाषाओं से संबंध पर आयोजित की गयी जिसमें वक्ताओं और मनीषियों द्वारा परिचर्चा की जायेगी ।
कार्यक्रम में लखनऊ विश्वविद्यालय कुलपति प्रोफेसर एस पी सिंह मुख्य अतिथि रहे तथा अध्यक्षता उर्दू अरबी फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर खान मसूद ने की एवं विशिष्ट अतिथियों में प्रोफ़ेसर आर आर लायल और जफरयाब जिलानी मौजूद रहे ।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ मशीउद्दीन खान ने अथितियों का स्वागत करने के साथ इस अवसर पर चार विभूतियों को सम्मानित किया। जिनमे अहमद इरफान अलीग,  प्रो० शफीक अशरफी, अलीमुल्लाह सिद्दीकी तथा डॉ० रोमा स्मार्ट जोजफ को उनकी साहित्यक व भाषाई सेवाओं के लिये सम्मानित किया गया । संगोष्ठी में डॉ० शोभा त्रिपाठी, डॉ० शबाना आजमी, एन निशा, अब्दुल करीम ने अपने विचार विस्तार से रखे। संगोष्ठी में मुख्य रूप से वक्ताओं ने उर्दू भाषा का हिन्दी भाषा से गहरे रिश्ते होने की बात पर बल देते हुए कहा कि उर्दू और हिन्दी में अन्तर करना बहुत मुश्किल काम है । उर्दू और हिन्दी एक दूसरे के बिना अधूरी है और दोनों भाषाओं को बोलने में फर्क भी नहीं महसूस होता है ।

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