इस तकनीक की सही जानकारियां न होने के कारण बच्चें की जान नहीं बच पाती

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बर्थ एस्फिक्सिया ले लेता है 19 प्रतिशत नवजातों का जीवन

सेव द चिल्ड्रेन परियोजना ने बचाई हजारों नवजात शिशुओं की जान

गोंडा, अलीगढ़ और रायबरेली के बाद अन्य जनपदों में चलेगा प्रशिक्षण कार्यक्रम
BRIJENDRA BAHADUR MAURYA


लखनऊ । राजधानी में शनिवार को सेव द चिल्ड्रेन परियोजना का समापन करते हुए संस्था ने अपने पॉच वर्षो के अनुभव और उपलब्धियों के लिये मीडिया कार्यशाला का आयोजन किया । एएमयू में पैडियाट्रिक विभाग के अध्यक्ष और सेव द चिल्ड्रेन परियोजना में डॉक्टरी परामर्श दे रहे डॉ० मनाजिर अली ने सेव द चिल्ड्रेन बर्थ एस्फिक्सिया के बारे में बतातें हुए कहा कि बच्चों के जन्म लेते ही अगला एक मिनट बच्चें की जान के लिये बहुत महत्वपूर्ण होता है । यदि बच्चा एक मिनट में सांस नहीं ले पाता तो वो मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और इस महत्वपूर्ण मिनट को गोल्डन मिनट के नाम से डॉक्टरी भाषा में कहा जाता है । उन्होनें बताया कि सेव द चिल्ड्रेन परियोजना की शुरुआत 2012 में गोंडा और अलीगढ़ जिलों से की गयी थी और बाद में एनएचएम के कहने पर इस परियोजना को रायबरेली जिले में भी चलाया गया । डॉक्टर अली ने कहा कि वैश्विक रूप से 19 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मृत्यु बर्थ एस्फिक्सिया के कारण जन्म लेने के एक मिनट के अन्दर हो जाती है । नवजातों की मृत्युदर कम करने के लिये तीनों जिलों के सरकारी अस्पतालों में स्टाफ नर्स और डॉक्टरों को बर्थ एस्फिक्सिया से निपटने के कौशल विकास की ट्रेनिंग दी गयी जिसमें कुल 783 लोगों को संस्थान द्वारा प्रशिक्षित किया गया । उन्होनें कहा कि हलाकिं ये ट्रेनिंग हर चिकित्सा शिक्षा के दौरान दी जाती है परंतु इस तकनीक की सही जानकारियां न होने के कारण बच्चें की जान नहीं बच पाती थी ।

https://youtu.be/2H5PcWoVQ0A

 सेव द चिल्ड्रेन परियोजना के यूपी प्रभारी सुरोजित चटर्जी ने बताया कि कौशल विकास की ट्रेनिंग के लिये संस्थान ने 12 आवश्यक नवजात शिशु देखभाल और रिससिटेशन केन्द्र स्थापित करने के साथ प्रशिशुओं के लिये कौशल विकास प्रयोगशाला तथा जॉब ऐड तैयार किये है । गोंडा, अलीगढ़, रायबरेली के अलावा अन्य 35 जिलों में भी परियोजना के तहत रिफ्रेशर कोर्स चलाया गया जिसमें 1263 लोगों को इस गोल्डन मिनट से निपटने के गुर सिखाये गये ।
सेव द चिल्ड्रेन परियोजना की उपलब्धियाँ बतातें हुए चटर्जी ने कहा कि तीन जिलों में बर्थ एस्फिक्सिया के 7587 मामले संस्थान ने देखे जिनमे से 5234 नवजातों की जान बचाई गयी । यही नहीं संस्था द्वारा चलाये गये प्रशिक्षण कार्यक्रम हजारों की संख्या में नवजात शिशु देखभाल कार्यक्रम के अंतर्गत स्वस्थ्य और जीवनशील बनायें गये । सेव द चिल्ड्रेन परियोजना की टेक्नीकल मैनेजर संगीता कर्माकर ने कहा कि यह परियोजना विश्व के 120 देशों में एक साथ चलाई गयी थी और अब इस कार्यक्रम के समापन के बाद हम फिर से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में इस परियोजना को दुबारा चलायेंगे जिससे कि नवजात मृत्युदर में भारी कमी की जा सके ।

 
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