आलमे इस्लाम में इत्तेहाद के लिये साइंस भी मददगार?
वक़ार रिज़वी
वक़्त के साथ हमेशा तब्दीलियां आयी हैं और जो वक़्त के साथ नहीं चला उसे वक़्त पीछे छोड़ता चला गया। मुसलमान भी जहां जहां वक़्त के साथ चले उन्हें कामयाबी मिली इसकी सबसे जि़न्दा मिसाल अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी और लखनऊ का करामत गल्र्स पी.जी. कालेज है जिसके बनाते वक़्त इसके बानी सर सैयद और करामत हुसैन को किन किन फ ़तवों का सामना नहीं करना पड़ा, मोलवियों ने तमाम हदीसों और शरई मसलों के ज़रिये इसकी सख़्त मुक़ालेफ़त की और उस वक़्त के तमाम मुसलमानों ने ख़ामोश रहकर इन सब मोलवियों की ताईद की लेकिन आज सौ साल बाद सर सैयद और करामत हुसैन को जिस इज्ज़त के साथ याद किया जाता है इसकी जि़न्दा मिसाल है कि उन्होंने वक़्त के तक़ाज़े को समझा और तमाम मुक़ालेफ ़त के बावजूद अपने मिशन को पाये तकमील तक पहुचाया। जिनके पूर्वजों ने इसके बनने में शदीद मुक़ालेफ ़त की थी उन्हीं की नस्लें इन्हीं दर्सगाहों से $फैजय़ाब हो रही हैं।
ऐसे ही एक मसला चांद का है जहां सिफऱ् शिया सुन्नी ही नहीं बल्कि सुन्नियों के ही तमाम फि़ रक़े एक दूसरे के मुक़ालिफ़ खड़े हैं कल तो हद हो गई जब यह पता चला कि न जानें कितने हमारे सुन्नी भाइयों ने रोज़ा रखकर तोड़ दिया। इसकी वजह आलमें इस्लाम को तलाश करनी चाहिये कि जब एक अल्लाह, एक किताब, एक रसूल फिर इन सबके हवाले एक क्यों नहीं, कैसे एक ने चांद मान लिया और कैसे दूसरे ने चादं नहीं माना, कैसे एक ने रोज़ा रख लिया और कैसे एक ने रोज़ा रखकर तोड़ दिया।
इस्लाम में इल्म की बहुत अहमियत है और इल्म बज़रिये साइंस आपकी बहुत सी दुश्वारियों को ख़त्म कर सकता है। डा. कल्बे सादिक़ साहब ने इल्म की रौशनी में बज़रिये साइंस इस इक़तेलाफ़ को ख़त्म करने की एक कामयाब पहल की है लिल्लाह सिफऱ् इस बुनियाद पर इसे आप न नकारें कि डा. कल्बे सादिक़ शिया फि़ रक़े से ताल्लुक़ रखते हैं आप भी अल्लाह की किताब को साइंसी नुक़्ते नजऱ से समझने की कोशिश करें जैसे अल्लाह ने अपनी किताब में हज के लिये ऊँट, घोड़े और खच्चर का जि़क्र किया लेकिन आपने साइंसी नुक़्ते नजऱ से इससे मुराद वक़्त की सवारी लिया और आप ऊँट, घोड़े और खच्चर होने के बावजूद हवाई जहाज़ से हज करने लगे, आपने पांचों वक़्त की नमाज़ का वक़्त, रोज़ा खोलने का वक़्त कि इस शहर में इतने मिनट इतने सेकेंड पर रोज़ा खोला जायेगा सब साइंसी इल्म से हासिल किया तो फि र चांद देखने के लिये आला जदीद साइंसी ज़रिया क्यों नहीं बन सकता?
याद रखिये आज आप जितनी चाहें हदीसों का हवाला देकर इसकी मुक़ाले$फत कर लें लेकिन वक़्त आपको कभी माफ़ नहीं करेगा जैसे उन मोलवियों को माफ़ नहीं किया जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी और करामत डिग्री कालेज जैसे जदीद तालीम इदारे बनने की मुक़ालेफ़त की थी। इसलिये आप अपने तमाम दानिश्वरों से जानने कि कोशिश करें कि क्या आलमें इस्लाम में इत्तेहाद पैदा करने के लिये साइंस भी मददगार हो सकती है? अगर वह कहें यक़ीनन तो आप उनके साथ हो जाइयें। याद रखें इस्लाम न सिफऱ् दीने फि़तरत है बल्कि दीने अक़्ल भी है और अक़्ल की ख़ूबी यह है कि वह हमेशा इल्म की तरफ़ रागि़ब होती है और इल्म आपको साइंस की हर रोज़ हो रही नई नई तहक़ीक़ों से रूबरू कराता है और वक़्त के आगे सोचने और चलने का शऊर देता है।
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