मन्दिर तोड़कर नहीं बनी मस्जिद, इसे गिराया जाना और इसमें मूर्तिया रखना दोनो ग़ैरक़ानूनी, यानि 1949 में रामलला स्वतः प्रकट नहीं हुये
इमाम-ए-हिन्द रामलला की हुई 2.77 एकड़ ज़मीन, भव्य मंदिर का होगा निमार्ण
शिया वक़्फ़ बोर्ड और निरमोही अख़ाड़े की अपील ख़ारिज, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को मिलेगी 5 एकड़ ज़मीन
न शरियत बची और न मस्जिद
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आज के बाद शायद कभी बाबरी मस्जिद का नाम अपने वजूद के लिये न लिया जाये लेकिन इसके लिये तो हमेशा लिया जाता रहेगा कि उसने कितनों को ज़मीन से अर्श तक पहुंचा दिया, कितनों को सियासी रहनुमा बना दिया कितनों को सत्तानशीन कर दिया और कितनों को टेलीविज़न और अख़बारों का चेहरा बना दिया लेकिन यह सब लोग मिलकर भी न तीन तलाक़ पर क़ानून बनने से रोक सके और न बाबरी मस्जिद अपनी जगह पर क़ायम रखने या बनवाने में कामयाब हो सके इसके विपरीत अगर यह मुददा ऐसे दानिश्वरों के पास होता जिनके दिल में क़ौम का दर्द होता तो जिस वक़्त एक सियासी जमाअत को सत्ता नशीन होने के लिये वाक़ई में मंदिर की ज़रूरत थी उस वक़्त उससे जामिया, उसमानिया जैसी यूनीवार्सिटी मांग कर क़ौमी मफ़ाअत में कोई पुरवक़ार मुहायदा किया जा सकता था, लेकिन आज वह वक़्त ख़त्म हो गया और आपको आगे की सियासत करने के लिये 5 एकड़ ज़मीन दे दी गयी जिससे आप अपने फ़रोग़ के लिये आगे की मंसूबाबंदी करते रहें और टेलीविज़न और अख़बारों में दिखते रहें।
मौजूदा सूरते हाल में केन्द्र और प्रदेश की सरकार की मौजूदगी में आस्था और विश्वास के जनसैलाब को देखते हुये क़ौमी यकजहती के मददेनज़र इससे अच्छा फ़ैसला शायद सम्भव भी नहीं था, यह फ़ैसला किसी की जीत और हार का नहीं क्योंकि यह फ़ैसला न किसी के ख़िलाफ़ आया है और न किसी के पक्ष में, यह फ़ैसला तो इमाम-ए-हिन्द श्री रामलला के पक्ष में आया है जिनका न सिर्फ़ हिन्दु बल्कि सभी मुसलमान भी आदर करते हैं आज से बरसों पहले इसी भारत की ज़मीन पर अल्लामा इक़बाल नें उन्हें इमाम-ए-हिन्द कहा था यानि पूरे हिन्दुस्तान के इमाम। अगर ज़फ़रयाब जिलानी साहब के ज़बानी उनके कुछ और तथ्यों को स्वीकार भी कर लिया जाता तो भी यही फ़ैसला आता क्योंकि इसके अतिरिक्त किसी अन्य फ़ैसले का नाफ़िज़ होना नमुमकिन था, हां अगर मुल्क के तमाम बुद्धजीवियों और उलेमा के साथ इस मुक़दमे में बाबरी मस्जिद के सभी पक्षकार पहले से ही यह एलान कर देते कि अगर फ़ैसला हमारे फ़ेवर में भी आया तो हम मुल्क में क़ौमी यकजहती बनाये रखने के लिये यह ज़मीन इमाम-ए-हिन्द श्रीराम के मदिंर के लिये ख़ुशी ख़ुशी दे देंगें, तो हो सकता है कि जितना आस्था में विश्वास किया गया उतना तथ्यों पर भी विश्वास किया जाता।
70 साल से मस्जिद में रामलला का स्वतः प्रकट होने को यह कहकर नकारना कि मस्जिद में मूर्तियां रखना ग़ैरक़ानूनी था फिर वाज़ेह तौर से यह कहना कि मन्दिर तोड़कर मस्जिद बनाने के कोई सबूत नहीं मिले और 1992 में मस्जिद का गिराया जाना ग़ैरक़ानूनी था, इसबात का प्रमाण है कि मुस्लिम पक्ष के तथ्य क़ाबिले ग़ौर थे, और इसी की स्वीकरोक्ति के लिये सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को 2.77 एकड़ ज़मीन की जगह
अयोध्या में किसी अच्छी जगह पर 5 एकड़ ज़मीन दिये जाने के निर्देश दिये गये, कोर्ट के इस आदेश को मुस्लिम पक्ष को अपनी जीत के रूप में देखना चाहिये क्योंकि जहां इस आदेश ने इस इल्ज़ाम से बरी कर दिया कि इस्लाम में किसी के धर्म स्थल को तोड़कर अपना धर्म स्थल कभी नहीं बनाया जा सकता वहीं कोर्ट के इस आदेश में यह भी वाज़ेह कर दिया गया कि आस्था और विश्वास के नाम पर कईबार ग़ैरक़ानूनी कार्य किये गये।
आज जो फ़ैसला आया है उसपर मोदी जी की टिप्पणी सराहनीय है कि यह न रामभक्ति का मौक़ा है न रहीम भक्ति का बल्कि यह भारतभक्ति का मौक़ा है, देश के गृहमंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी ने भी देश की एकता बनाये रखने, सभी की आस्था का सम्मान करने और सबको साथ लेकर चलने की बात की है हम सबको उनके सुर से सुर मिलाना चाहिये और कोर्ट के इस फ़ैसले का दिल से सम्मान करना चाहिये और इमाम-ए-हिन्द श्रीराम के जन्म स्थल को इस रूप में विकसित करने में मददगार होना चाहिये कि यहीं से रामराज्य का उदय हो, यह स्थान किसी एक धर्म विशेष के लिये नहीं बल्कि पूरे मानवजाति की आस्था का प्रतीक बने।