हर गांव में कच्ची का पक्का इंतजाम
निज़ाम अली
पिछले दो दिनों में कानपुर नगर व देहात में जहरीली शराब पीने से १३ लोगों की मौत हो गयी और करीब दो दर्जन से ज्यादा लोग गंभीर हालत में अस्पतालों में भर्ती है। जहरीली कच्ची शराब ज्यादातर मजदूर, रिक्शे वाले, पैसा मांगने वाले अथा पोस्टर्माटम हाउस में लाशों की चीरफाड़ करने वाले ज्यादा पीते है।
्हर महीने उत्तर प्रदेश के किसी न किसी जिले से जहरीली शराब पीकर मरने वालों के बारे में खबरे आती रहती है। फिर चाहे वह राजधानी लखनऊ हो अथवा बाराबंकी, उन््नाव, कानपुर, आजमगढ़ या प्रतापगढ़। कुछ दिनों तक इस पर हंगामा होता और आबकारी विभाग व पुलिस वाले १० लीटर शराब बरामद करके अपनी पीठ थपथपवा देते हैं मामला शांत होते ही फिर उसी तरह सारा कारोबार चलना शुरु हो जाता है। २०१५ में मलिहाबाद के दतली गांव में ५१ व्यक्ति जहरीली शराब पीने से मर गये थे। ३० मई २०१६ को राजधानी के गोसाईगंज के माढरमऊ गांव के मनीराम, मुन्नीलाल व बाबूराम की मौत हो गयी थी। एक साल पहले उन्नाव में जहरीली शराब पीने से कई व्यक्तियों की मौत हो गयी थी। लखनऊ में ही मोहनलालगंज, गोसाईगंज, नगराम, निगोहा, मलिहाबाद, माल,आशियाना और बंथरा में कच्ची जहरीली शराब का धंधा बहुत जोरो से चलता है। कच्ची
शराब ८० से १०० रुपये प्रति लीटर के हिसाब से तैयार होती है। फिर यह धंधा करने वाले ग्रामीण एंजेटों के माध्यम से ढाबों तक जाती है।मलिहाबाद के जमेलिया गांव में गुल्लू व ढीमा ब्रांड का पौवा ४० रुपये में मिल जाता है। जहरीली शराब का धंधा हजारों व लाखों का नहीं बल्कि करोड़ों का है। हकीकत तो यह है कि हर गांव में कच्ची शराब का पक्का इंतजाम होता है। इसके चलवाने में सफेदपोश नेता, पुलिस व आबकारी विभाग के बड़े-बड़े अधिकारी शामिल है। कानपुर में एक नेता व उनके बेटे के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई है।
सबसे ताजुब्ब की बात यह है कि जब भी कोई बड़ी वारदात होती है तो सरकार जागती है फौरन जिला आबकारी अधिकारी व आबकारी इंस्पेक्टर तथा संबंधित थाने का थानाध्यक्ष कुछ दिनों के लिए निलंबित कर दिया जाता है। बाद सब बहाल हो जाते।
वास्तव में जहरीली शराब का धंधा आबकारी अधिकारी, क्षेत्रीय आबकारी इंस्पेक्टर, पुलिस क्षेत्राधिकारी, संबंधित थानाध्यक्ष की पुश्तपनाही में होता है। इन सबकों को इसके लिए हर महीने मोटी रकम मिलती रहती है। जब ऊपर सेे बहुत दबाव होता है तो बीट का दरोगा जा के भट्टी को दो तीन दिन के लिए बंद करवा देता है। थोड़ा हल्ला कम होते ही फिर भट्टियां धधक ने लगती है। शराब का धंधा ऐसा है कि कोई भी सरकार इसे बंद करना नहीं चाहती। सरकार के खजाने में इसका एक बड़ा हिस्सा बगैर कुछ लगाये ही आ जाता है। अंग्रेजी शराब की तस्करी होती रहती है। इसमें भी आबकारी विभाग व पुलिस की मिली भगत होती है। राज्य सरकार को चाहिए कि इसके खिलाफ कोई टोस योजना बनाकर प्रभावी कार्रवाई करें नहीं तो हर साल जहरीली शराब पीकर लोग मरते रहेंगे और यह धंधा बदस्तूर जारी रहेगी।
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