भारत सरकार रक्षा-मंत्रालय का आदेश संविधान के अनुच्छेद-14 का घोर उल्लंघन:ए.ऍफ़.टी

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BRIJENDRA BAHADUR MAURYA…………………
लम्बी लड़ाई के बाद ले.कर्नल पाया डिसेबिलिटी पेंशन                      

भारत सरकार रक्षा-मंत्रालय का आदेश संविधान के अनुच्छेद-14 का घोर उल्लंघन:ए.ऍफ़.टी                                             

ए.ऍफ़.टी. का निर्णय अन्य विकलांग-सैनिकों को लाभ देने वाला: विजय कुमार पाण्डेय

सेना के उच्च-अधिकारियों  का मनमाना रवैया केवल सिपाहियों के मामले में ही नहीं है अपितु अधिकारियों के मामले भी उच्चाधिकारी मनमानी कार्यवाहियों को अंजाम देने से बाज नहीं आते मामला यह था कि सेवानिवृत्त ले.कर्नल विजय कुमार सेना में कमीशंड अधिकारी के रूप में 10 अप्रैल 1978 में भर्ती हुआ था और अपनी सेवा शर्तों को पूरा करने के पहले उसने सेना से अवकाश ले लिया क्योंकि उसे ‘सेंसोरी न्यूरल डीफनेस बिल’, पनुवेटिस विथ लैटिस डिजनरेशन with रेटिनल होल्स (आर.टी.) फोटो कागुलेशन एंड कर्यो अप्प्लिकेशन डन’, पी.आई.वी.डी. एल वी-5-एस-1 की बीमारियाँ सेना में नौक्रिके दौरान हो गयी और उसे मेडिकल बोर्ड करके, मनमाना रुख अपनाते हुए बगैर विकलांगता पेंशन का लाभ दिए निष्कासित कर दिया गया.                                                                                  याची ने पेंशन देने वाले विभाग के समक्ष जब अपील की तो रक्षा लेखा प्रधान नियंत्रक(पेंशन) ने बगैर मामले की तहकीकात किए मनमाना रुख अपनाते हुए यह कहकर विकलांगता पेंशन देने से इनकार कर  दिया कि याची की बीमारी का सेना से कोई लेना-देना नहीं है, याची विजय कुमार ने रक्षा सचिव के सामने भी मामले को उठाया लेकिन उन्होंने उन्होंने भी बगैर दिमाग का प्रयोग किये याची की याचना को नहीं सुना.             इसके बाद सेना के मनमाने रवैये से तंग आकर ले.कर्नल विजय कुमार ने सेना कोर्ट ए.ऍफ़.टी. में केश नं.240/2016, ले. कर्नल विजय कुमार बनाम भारत सरकार एवं अन्य दायर किया जिसकी सुनवाई करते हुए माननीय न्यायमूर्ति देवी प्रसाद सिंह एवं ले.जनरल ज्ञान भूषण की खंड-पीठ ने भारत सरकार रक्षा-मंत्रालय से पूंछा की जिस सैनिक ने 21 वर्ष तक स्वस्थ रहकर देश की सेवा की हो उसको 21 वर्ष बाद यह कहकर बगैर विकलांगता पेंशन दिए निकाल देना कि, उसको बीमारी सेना की वजह से न होकर आनुवंशिक रूप से है यह कहाँ तक उचित है, इस पर भारत सरकार द्वारा दिए गये जवाब को कोर्ट ने मानने से इनकार कर दिया.

कोर्ट ने भारत सरकार, रक्षा-मंत्रालय और प्रधान पेंशन नियंत्रक से पूंछा कि क्या रेगुलेशन 48 की व्यवस्थायों से सरकार अवगत नहीं है, रही बात रक्षा-मंत्रालय के उस पत्र की जिसे दिनांक 1 जनवरी 2006 के बाद के लोगों पर लागू किया गया है, उसमें की गयी इस व्यवस्था को इस आधार पर नहीं स्वीकार किया जा सकता क्योंकि आपका यह पत्र भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 का घोर उल्लंघन है, इस तरह के नियमों और कानूनों को बनाने की अनुमति अदालत नही दे सकता जो व्यक्तियों को किसी तारीख को आधार बनाकर भेद-भाव को जन्म देता  देता हो.

खण्ड-पीठ ने भारत सरकार रक्षा मंत्रालय की सारी दलीलों को सिरे से ख़ारिज करते हुए आदेश पारित किया कि सरकार ने याची विजय कुमार के साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14, रेगुलेशन 48&173 का उल्लंघन करते हुए मनमाना रुख अपनाते हुए विकलांगता पेंशन नहीं दी, कोर्टने भारत सरकार को आदेशित किया कि याची को सरकार 50% विकलांगता पेंशन 9% व्याज के साथ दे और उसका दुबारा मेडिकल कराकर उसकी विकलांगता का पुनर्निर्धारण करे, बार के जनरल सेक्रेटरी विजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि विकलांगता पेंशन के मामले इस निर्णय का लाभ उन सैनकों को भी मिलेगा जो सेना के अधिकारियों की मनमानी की वजह से विकलांगता पेंशन नहीं पा सके हैं और उनके साथ भेदभाव किया गया है, भविष्य में सरकार ऐसे नियम कानून को बनाने से परहेज करेगी जो संविधान की मूलभावना को खंडित करने वाला होगा और देश के लोगों को बांटने वाला होगा.

 

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