भारत किसके साथ, ईरान या अमेरिका

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भारत ईरान से कच्चा तेल आयत करना बंद क्यों नहीं कर सकता?

सबसे अहम् बात, दुसरे देशो के मुक़ाबले ईरान से भारत तेल लाने में कम खर्च आता है. इसके अलावा खाड़ी देशो की तुलना में तेहरान रक़म अदा करने का ज़्यादा वक़्त भी देता हैं.

यही नहीं भारत ने ईरान के चाह्बर बंदरगाह पर काफी निवेश किया है. जिसका मुख्य उद्देश्य अफ़ग़ानिस्तान में व्यापार का रास्ता साफ़ करना है.

कुछ महीनो पहले मुंबई में पत्रकारों से बातचीत के दौरान भारत के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने खुले शब्दों में किसी भी दबाव से इंकार किया था उन्होए कहा था कि तेल की आपूर्ति के लिए कई स्त्रोत होना चाहिए. और इसके बाद की सभी चीज़े अंतर्राष्ट्रीय राजनीती पर छोड़ देनी चाहिए. हम सदैव अपना हित देखेंगे. जब भी ईरान मामले पर कोई फैसला होगा तो आप लोगो को ज़रूर सूचना दी जाएगी.

न्यूयॉर्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र आम सभा की बैठक से हटकर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनके ईरानी समकक्ष जावेद ज़रीफ़ के बीच एक अहम् बैठक हुई थी. इस बैठक के बाद ईरान के विदेश मंत्री ने कहा था कि भारत ने इस बात का आश्वासन दिया है के दोनों देशो के मध्य आर्थिक सहयोग जारी रहेगा. हालाँकि दिल्ली कि तरफ से इस बयान की पुष्टि नहीं की गयी है.

भारत ईरान से कच्चे तेल का आयात करेगा या नहीं, यह मामला अभी परदे के भीतर है. भारत में करीब 12 फीसद कच्चा तेल ईरान से आता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले वर्ष भारत ने ईरान से तकरीबन 7 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयत किया था. लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से भारत पर अमरीकी दबाव है कि वो तेहरान से कच्चे तेल का आयत तत्काल बंद कर दें.

ईरान परमाणु संधि से बहार निकलने के बाद अमरीका ने इसी वर्ष मई महीने में नए प्रतिबन्ध लगाने के साथ साथ कहा था कि दक्षिण एशियाई देश, भारत, चीन, पाकिस्तान जैसे मुल्क ईरान से तेल खरीदना बंद कर दें.

हाल ही में भारत के दौरे पर आएं अमरीकी विदेश मंत्री माइक पैम्पो ने कहा था कि “हम ने भारत से कहा है कि 4 नवम्बर तक ईरान से आयात करने वाले टेल की मात्रा को शुन्य कर दे. और ऐसा ही हमने दुसरे देशो से भी कहा है.”

भारत इस मामले में हमेशा कहता रहा है कि वह किसी के दबाव में फैसला नहीं लेगा. लेकिन अमरीकी अधिकारीयों के दबाव के बाद भारत की मुश्किलें बढ़ती नज़र आ रही हैं.

आपको बता दें कि अमरीका के नए प्रतिबंधों और विगत वर्षो के प्रतिबंधों में काफी अंतर है. पिछले वर्षो तेहरान पर लगाए गए प्रतिबंधों में यूरोपी संघ भी शामिल था जबकि ये फैसला सिर्फ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का है. यह एकतरफा प्रतिबन्ध हैं लेकिन भारत और अमरीकी सम्बन्धो के मद्दे नज़र भारत के लिए मुश्किल की घरी है.

 

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