जबसे इस ख़बर की तस्दीक़ हुई कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ होंगे तमाम दानिश्वरों के लबों पर अली सरदार जा$फरी का यह शेर बार-बार दस्तक दे रहा है, और क्यों न दे, मुख्यमंत्री की जो तस्वीर आम लोगों के ज़ेहननशीं है वह बहुत सरल इंसान की नहीं है जबकि यह मुमकिन है अस्ल में वह इसके बिल्कुल बरहक़्स हों। यह मैं इस बुनियाद पर कह रहा हूँ कि अपने गोरखपुर आफि़स के उद्घाटन पर हमारे नुमाइंदे मुनव्वर रिज़वी ने योगी जी को भी दावत दी थी, जब मैंने उनसे इस बाबत हैरत से जानना चाहा तो उन्होंने बड़े इत्मिनान से कहा- नहीं, आप जैसा समझते हैं वैसा नहीं है। हम लोगों के सारे काम वह ही तो करते हैं। हमारे लिये यह हैरत की बात थी कि हाथी के दाँत ‘दिखाने के औरÓ और ‘खाने के औरÓ। खैर! बात आई-गई हो गई, लेकिन अभी इलेक्शन जिस बुनियाद पर लड़ा गया उसमें एक ऐसी तस्वीर सामने आयी जिसमें आप ख़ुद अंदर से इतने खऱाब न भी हों तो भी आपको कुछ ऐसा करना है जिससे नफऱत बढ़े, 20 प्रतिशत और 80 प्रतिशत में दूरियाँ बढ़ें और इलेक्शन विकास के मुद्दे से कहीं दूर बस 20 प्रतिशत बनाम 80 प्रतिशत हो जाये और यह प्रयोग पूरी तरह से कामयाब भी रहा। ढाई साल बाद 2019 में लोकसभा का चुनाव है, कामयाबी के लिये इस बुनियाद को बाक़ी रखना भी है, शायद इसीलिये योगी जी को मुख्यमंत्री बनाया गया हो। आज के हालात में जब तक योगी जी अपनी इमेज के खि़ला$फ मुज़ाहरा न करें आम इंसान ख़ौफज़़दा ही रहेगा। हालाँकि लखनऊ में सभी धर्मों में हरदिलअज़ीज़ डॉ.दिनेश शर्मा को उप मुख्यमंत्री बनाकर इस ख़ौ$फ को कुछ कम करने की कोशिश ज़रूर की गयी है। प्रदेश की 22करोड़ जनता योगी जी से यह उम्मीद करती है कि जीत के बाद मोदी जी के दिये गये पहले बयान कि ”सरकार बनती है बहुमत से मगर चलती है सर्वमत सेÓÓ को सचकर दिखायेंगे और अगर उन्होंने वास्तव में ऐसा ही किया तो फिर 20 और 80 क्या, पूरे 100 उनके ही पाले में होंगे क्योंकि अभीतक मुस्लिम-हितैषी कही जाने वाली पार्टियों ने मुस्लिम वोट ही लिये हैं। उसके बदले में मुसलमानों को क्या मिला, इसकी सनद सच्चर कमेटी की रिपोर्ट है।
मुना$िफक़त की भी हद हो गयी, कुछ मौक़ा दें इस सरकार को। कुछ ऐसा कर लेने दें इस हुकूमत को कि आप जब ढोल-ताशे बजायें तो आपको फिर चाहे जो नारे लगायें, जुलूस निकालें, पोस्टर-बैनर सबकुछ लगाकर अपनी ख़ुशी का इज़हार करें लेकिन वक़्त से पहले करने पर आपको लोग मुनाफि़क़ के सिवा कुछ न समझेंगे, वह भी आपको कोई अहमियत न देगा, जिसके दिखावे के लिये यह मक्कारी कर रहे हैं।
शनिवार को मुख्यमंत्री का नाम तय हो जाने के बाद से बेशर्मी के साथ नारे, पोस्टर, बैनर, जुलूस और ख़ुशियों का इज़हार कुछ इस तरीक़े से मुस्लिम हल्क़ों में हो रहा है, जैसे यह सरकार इन्हीं के वोटों से बनी है। जो कल तक दूसरों का बैनर लगाये थे अचानक नतीजे आने के बाद उनके बैनर बदल गये, स्लोगन बदल गये यानि बस अब जय श्रीराम कहने की देर है। इसके अलावा वह 24 घंटे में अपनी वफ़ादारी का सुबूत कुछ इस तरह से दे चुके हैं जिसे देखकर लगता है कि अगर आज यज़ीद भी सत्ता में आ जाये तो यह उसके भी तरफ़दार हो जायेंगे।
यह भी वक़्त इंशाअल्लाह ज़रूर आयेगा, लेकिन वक़्त से पहले यह हरगिज़ ज़ेब नहीं देता कि जो कल तक बुरा था अचानक सत्ता में आते ही अच्छा हो गया। उसे कुछ अच्छा करने दीजिये फिर आपका हक़ है कि आप जितनी चाहे उसकी तारीफ़ करें।
मोहसिन रज़ा को दिली मुबारकबाद
हमारे खेल के ज़माने के ऐसे दोस्त जब खेलते थे तो खेल की दुनियां में धूम मचा रखी थी और जब सियासत में क़दम रखा तो यहाँ भी तीन सालों में वह हासिल करके दिखाया जिसके लिये लोगों को 30 साल भी इंतेज़ार करना पड़ता है। हम उन्हें इस बात पर मुबारकबाद देते हैं कि वह जिसके साथ रहे उस वक़्त से रहे जब भाजपा न केन्द्र में थी और न प्रदेश में। उन्होंने मौक़ापरस्ती से काम नहीं किया इसीलिये कहते हैं नेकनियती और मेहनत कभी ज़ाया नहीं जाती। आज मंत्री पद का तोहफा उनकी पिछले तीन सालों की भाजपा से वफ़ादारी, खि़द्मतग़ुज़ारी का सिलसिला है और वह इसके हक़दार भी थे, लेकिन उनकी राह इतनी आसान नहीं, क्योंकि सिफऱ् शिया ही नहीं वह इस वक़्त पूरे 20 प्रतिशत यानि ढाई करोड़ मुस्लिमों के प्रतिनिधि हैं। हम सब उनके लिये दुआगो हैं, वह सबकी उम्मीद पर पूरी तरह से खरे उतरेंगे।
वक़ार रिज़वी
