बस इसके सिवा क्या है ?

0
193
Waqar Rizvi
हमारे दामन में बस इसके सिवा क्या है ? कि एक दिन पूरी दुनियां में हम मुत्तहिद होकर अपनी ताक़त का मुज़ाहरा कुछ इस तरह से करते हैं कि दुश्मन के होश उड़ जाते हैं और जो दुश्मन साल भर मुसलमानों को निस्तोनाबूद करने की साज़िशे रचता है वह आशूर के दिन कर्बला के शहीदों का जुलूस देखकर यह सोचने पर मजबूर होता हैं कि बड़ी से बड़ी ताक़त बस इसके सिवा क्या कर सकती है कि समाने वालों के सर क़लम कर लिये जायें लेकिन यह जुलूस तो उनका है जिनके सर भी क़लम हुये लेकिन फ़ातेह भी यही कहलाये क्योंकि जुलूस तो हमेशा फ़ातेह का ही निकलता है। ब एकवक़्त पूरी दुनियां में उठने वाले यह जुलूस 1400 साल पहले की याद दिलाते हैं कि ज़ालिम कितना ही ज़ुल्म कर ले लेकिन हक़ को कभी ज़ेर नहीं कर सकता। वाज़ेह रहे 1400 साल पहले एक ज़ालिम बादशाह जो अपने को मुसलमान कहता था उसने चाहा कि अपनी ताक़त और कसीर तादाद फ़ौज के ज़रिये इमाम हुसैन के 72 अफ़राद जिसमें 85 साल के मुस्लिम इब्ने औसजा और 6 महीने के अली असग़र भी थे, अपनी बात मानने के लिये मजबूर कर लें लेकिन इमाम हुसैन के एक इंकार ने रहती दुनियां तक यह पैग़ाम दिया कि इमाम हुसैन जैसा कभी यज़ीद जैसे की बैयत नहीं कर सकता।
रात हुसैनी चैनल देखने के बीच एक चैनल पर अचानक देखा कि मोहर्रम से मुतालिक़ ख़बर आ रही है, इसे देखने के लिये रूक गया कि सब जगह अमन और अमान तो रहा ? तो देखा कि पूरी दुनियां में शायद ही कोई ख़ित्ता ऐसा हो जहां इमाम हुसैन को ख़िराजे अक़ीदत पेश करने के लिये अपने अपने तरीक़े से वहां के लोगों ने जुलूस न निकाला हो। कोई ऐसी जगह न थी जहां ताज़िया जुलूस के साथ न हो और कोई जुलूस ऐसा न था जिसमें हज़रत अब्बास के अलम का परचम बुलन्द होकर यज़ीद की शिकस्त का ऐलान  न कर रहा हो।
अभी व्हाटसअप पर गश्त करती एक तक़रीर में सुनी कि पूरी दुनियां में मुसलमानों की कुल तादाद में शियों की हिस्सेदारी सिर्फ़ 8 प्रतिशत है जिसमें कई गांव और कई शहर ऐसे भी हैं जहां शियों की तादाद न के बराबर है ऐसे में सिर्फ़ शिया ही पूरी दुनियां में इस शान शौकत से इमाम हुसैन की शहादत पर जुलूस निकालते हैं यह अक़्ल में आने वाली बात नहीं हैं। वैसे भी इसमें शिया सुन्नी का का कोई सवाल भी नहीं है इमाम हुसैन को याद करने के लिये तो बस इंसान होना शर्त है और जो इंसान हो उसके सीने में दिल भी होगा, क़ुवते एहसास भी होगी जब क़ुवते एहसास होगी तो यही क़ुवते एहसास आपमें सलाहियतो जुर्रते पैदा करेगी कि आप हक़ और बातिल में इम्जियाज़ कर सकें, हक़ की पैरवी करें और बातिल की मुक़ालेफ़त। जिनका क़ुवते एहसास मर चुकी होती है वह इमाम हुसैन और कर्बला को शियों से जोड़ कर देखते हैं शायद उन्हीं के लिये शायरे इंक़िलाब जोश मलिहाबादी ने कहा था कि
इंसान को बेदार तो हो लेने दो
हर क़ौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन।।
पूरी दुनियां में निकलने वाले यह जुलूस न सिर्फ़ 1400 साले पहले हक़ की फ़तेह का एलान करते हैं बल्कि आज उस दहशतगर्दी के कलंक को भी मिटाते हैं जो यह कहते हैं कि इस्लाम दहशतगर्दी का मज़हब है और इसे तलवार के ज़ोर पर फैलाया गया है। इस्लामी तारीख़ ही नहीं पूरी दुनियां की तारीख़ में सिर्फ़ कर्बला की जंग ऐसी है जहां फ़तेह सर कटाने वालों कह हुई नाकि सर काटने वालों की इसीलिये शायद अल्लामा इक़बाल ने कहा कि
इस्लाम के दामन में बस इसके सिवा क्या है
एक ज़रबते यदुल्लाही एक सजदै शब्बीरी।।
Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here