Waqar Rizvi
यकुम मोहर्रम
आज माहे मोहर्रम की पहली तारीख़ है आज ही के दिन हुर्र के लश्कर ने इमाम हुसैन के काफि़ले को रोका था, यह हुर्र ही थे जो इमाम हुसैन को कर्बला लेकर आये और यह हुर्र ही थे जिनकी वजह से इमाम हुसैन के छोटे छोटे बच्चे तीन दिन तक अलअतश अलअतश हाय प्यास हाय प्यास कहते रहे लेकिन इमाम हुसैन ने सख़्त से सख़्त मरहले में भी इंसानियत का साथ नहीं छोड़ा और अपने मानने वालों को दर्स दिया कि इंसानी जि़दगी की हिफ़ाज़त हर हाल में लाज़मी है चाहे वह दुश्मन ही क्यों न हो।
जब हुर्र ने अपने एक हज़ार के लश्कर के साथ इमाम हुसैन को घेर कर अपने साथ ले जाना चाहा तो इमाम हुसैन ने देखा कि उसका लश्कर बहुत प्यासा है प्यास से जानवरों की ज़बाने बाहर आ गयी हैं, मौक़ा अच्छा था इस वक़्त जंग आसान थी लेकिन इमाम हुसैन को यह जंग एक दिन के लिये नहीं उन्हें तो कय़ामत तक अपने को फ़ातेह कहलाना था इसलिये उन्होंने सर काटकर नहीं दिल जीत कर जंग जीतने का मंसूबा बनाया था इसी के तहत उन्होंने अपने असहाब को हुक्म दिया हमारी मष्कों का पानी फौरन दुष्मन फ़ौज के प्यासों को पिला दिया जाये चाहे वह इन्सान हों या हैवान ? कोई प्यासा ना रह जाये। हुक्मे इमाम मिलते ही जानिसारों ने छागलों के दहाने खोल दिये बरतनों में पानी भर भर कर जानवरों के सामने भी रख दिये, जो सिपाही बद-हवासी के सबब अपने आपसे पानी पीने की सकत नहीं रख़ते थे उन्हें हुसैन ने ख़ुद अपने हाथों से पानी पिलाया। पहले ही दिन इमाम हुसैन ने फ़तेह का एलान कर दिया कि हम गला काटने नहीं दिल जीतने आये हैं मगर शर्त यह कि उसका हसब नसब अच्छा होना चाहिये और इसका सबूत हुर्र ने अपने जवाब से दे दिया जब इमाम हुसैन की लजामे फऱज़ पर हुर्र ने हाथ डाला तो इमाम हुसैन ने कहा हुर! क्या तू चाहता है कि तेरी माँ तेरे मातम में बैठे ? हुर ने कहा फऱज़ंदे रसूल! आप उस माँ के बेटे हैं कि मैं अपनी ज़बान पर आपकी माँ का नाम भी नहीं ला सकता। यही हुर्र पशेमानी के साथ 10 मोहर्रम को अपने जवान बेटे अपने भाई और अपने ग़ुलाम के साथ जिं़दगी की तमाम ऐशो आराम छोड़कर अपने हाथ बांधकर इमाम हुसैन के क़दमों में आ गया जहां यक़ीनी मौत से पहले बेहद दुश्वार जि़ंदगी थी। यह पहला इंसानसाज़ी का दर्स था जो कर्बला ने हमें दिया।
यही नहीं इमाम हुसैन ने जि़ंदगी और मौत का फ़लसफ़ा भी पहले ही दिन बता दिया जब हुर्र ने उनसे कहा कि आप जंग का इरादा ना कीजिए, आपके साथ औरतें और बच्चे हैं, जंग हुई तो सब के सब मारे जाऐंगे। इमाम हुसैन ने हुर की बातों को सुना और निहायत संजीदगी के साथ जवाब दिया कि ऐ हुर ! यज़ीद का लष्कर ज़्यादा से ज़्यादा हमें क़त्ल ही तो कर देगा, मौत तो एक दिन सबको आनी है, लेकिन हम अपने ज़मीर का सौदा किस तरह कर लें, हम किस दिल से यज़ीद जैसे फ़ासिक़ व फ़ाजिर के हाथों पर बैअत कर लें क्या हम षरीयते मुहम्मदी के हलाल को हराम और हराम को हलाल होता हुआ देखकर भी ख़ामोष रहें। इमाम हुसैन के यह फि़ख्रे उन लोगो के लिये दर्स हैं जो ज़ालिम हुकुमत के आगे सर ख़म कर देते हैं और कहते हैं कि हम क्या करें।
यह मजालिस इंसानसाज़ी का ऐसा शाहकार हैं जहां इंसान बनाये जाते हैं बशर्ते इसका मक़सद वाह वाह और एक दूसरे पर तनक़ीद और छीटाकशी न हों, जि़क्रे हुसैन हो उनकी अज़ीम क़ुरबानी को याद कर उनके मक़सद को बाक़ी रखने का तसकेरा हो, बाबुल इल्म का जि़क्र हो जिससे इल्म की शमा सुनने वालों के ज़हन में जले और जेहालत का अंधेरा दूर हो क्योंकि जेहालत एक दूसरे को आपस में लड़ाती है और इल्म एक दूसरे को कऱीब लाता है। ऐसे बने कि मौला भी कहें कि यह हमारा शिया है।
9415018288
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